पात्र :
गुड्डे वाली लड़की गुड़िया वाली लड़की गुजराती सिंधी
गुड्डे वाला लड़का गुजराती
गुड़िया वाला लड़का सिंधी
सरदार, बंगाली, राजस्थानी सेठ, उत्तरप्रदेश के पंडित जी तथा दो-तीन पात्र और ढोल-नगाड़े, बैंड, रोशनी व घोड़े वाले ।
सरदार : की सत सिरी अकाल बादशाओ, सान्नू उत्थे ही छड्ड आये यार । (र पर जोर देकर बोलता है।) (सरदार एक खाली कुरसी पर बैठ जाता है। पास ही अटैची रख लेता है। प्लेटों में मिठाई आदि बँटना शुरू होता है तभी सरदार जी बोल पड़ते हैं।)

सरदार : ओ बादशाओ, भूख लगी है यार सान्नू भी कुछ देओ यार । ( सरदार को चाय-नाश्ता दिया जाता है।)
बंगाली : (चाय की चुस्की लेते हुए) सरदार, ओ राजस्थान शेठ पकोड़ामल को कीदर छोड़ा बाबा... ।
सरदार : (आश्चर्य से, मुँह में मिठाई का टुकड़ा है) ओ बादशाओ, सेठ इत्थे नहीं पोंच्या? (आँख मूँदकर, हाथ ऊपर उठाते हुए) वाहे गुरु.... वाहे गुरु... कमाल किता राजस्थानी सेठ ने बा'शाओ। (हँसते हुए) ते खरगोश और कछुए दी काहणी हो गई यार....

(सेठ का प्रवेश परेशान-सा हाँफते हुए कपड़े की पोटली बगल में हैं। सरदार की अन्तिम बात सुन लेता है, हँसते हुए)
सेठ : अरे, म्हारो बेटो ओ पंजाबी काछुओ महारा सूँ पैलो पुगग्यो कांई? (सेठ को देखकर सब मुस्करा देते हैं। दूल्हे का पिता सेठ को आदर से बैठाता है।)
उत्तरप्रदेशीय : सेठ साहब, आपको यात्रा में कोई कष्ट तो नहीं हुआ ?
सेठ : (पसीना पोंछते हुए) अरे, कष्ट री बातां पछे करज्यो। (धोती के पल्ले) से हवा करते हुए और इधर-उधर देखकर) अरे ल्या भाई ल्या, कठौ चलेग्यो...? (पेट पर हाथ फेरते हुए) अठे तो प्राण निकलग्या भूखा मरता का (एक खाने-पीने का सामान लाने वाले को रोककर) एक लोटो दूध और रबड़ी लिया भाया, बाकी पर्छे देखी जास्सी... (सब लोग हँसते हैं।)
सरदार: (बँधी हुई दाढ़ी पर नीचे से ऊपर की ओर हाथ फेरते हुए) सेठ, साड्डे पंजाब में तू चल यार, तेनू पेट भर लस्सी, पेड़ेवाली खिलावां।
(पेड़ेवाली पर जोर देकर)

बंगाली: सेठ मोशाय! तुम तो हमारा बंगाल देश चलो तो रोशगुल्ल से तुम्हारा ई पेट भर दें बाबा।
उ. प्र. वाला : सेठजी इनके पंजाब में बस एक पेड़ा बे और इनके बंगाल में केवल रसगुल्ला आप तो हमारे उत्तरप्रदेश चलिए, छप्पन तरह की मिठाई से हम आपके शरीर की इस टंकी को भर देंगे।
सेठ : अरे, पण म्हारा देश में मिठाई की किसी कमी हैं, म्हारा यार.... हूँ सब जाणूं हूँ, कांई पड्यो है ई का पंजाब में, अर कांई धर्यो है ई का बंगाल में, अर लालाजी कांई है थारां उत्तरप्रदेश में ।
सरदार: देखो सेठ, हम तुम्हारी इज्जत करते हैं, तुम हमारे पंजाब दे वास्ते कुछ ऐसा वैसा न सोचना, न बोलना। - हमारा पंजाब ना होता तो तुम सब भूख से मर जाता, दुश्मन तुम्हारे सीने पर आ बैठता.... असली घी-दूध खाते हैं सेठ, तुम्हारी तरह दाल-रोटी या इनकी तरह सूखी मछली नहीं।
बंगाली : सरदार तुम अमार वाश्ते ऐसा नहीं बोलो। तुमको इतिहास का ज्ञान नहीं है सरदार। हम माच्छी खाने वाले लोगों ने ही क्रान्ति किया और आजादी लिया।

सरदार : रहन दे मोशाय, हम पंजाब वालों ने खून का दरिया बहाया, तब आजादी मिली, समझे.... दुश्मन को ईदर कदम नहीं रखने दिया कभी....। (एकाएक भीतर से तेज नारी स्वर, लगभग चीखते हुए )
नारी स्वर: बंद करो शहनाई।
(एक लड़की आकर गुड्डे के पिता को चुपचाप कान में कुछ कहती हैं। और दोनों अन्दर चले जाते हैं। दूसरे ही क्षण अन्तर से तेज स्वर सुनाई देता है।)
पुरुष स्वर : (गुड्डे का पिता) यह कैसे हो सकता है? यह तो सरासर हमारा अपमान है। (कहता हुआ मंच पर
आता है।) आपको पहले सोचना चाहिये था। हमें घर बुलाकर अपमानित किया जा रहा है।
दो तीन स्वर : (बारातियों के) क्या हुआ गुजराती बाबू? (चिंता और आश्चर्य से)
गुजराती : कहते हैं ये शादी नहीं होगी।

सेठ : (आश्चर्य से) शादी नहीं होगी? कोई कारण भी तो होसी, शादी क्यों नहीं होगी ?
गुजराती : कारण सुनकर दंग रह जाएँगे सेठजी, कहते हैं गुड़िया सिंधी है, हम गुजराती गुड्डे से शादी नहीं करेंगे।
श्रीमती गुजराती : नहीं करते न सही। कौन हमारा गुड्डा कुँआरा रह जाएगा।
सरदार : (स्वतः) वाहे....गुरु वाहे गुरु..... (आँखें मीचे हाथ उठाकर)
सेठ : (स्वतः) हरी ओम.... ओम... शिव शिव ! हरी ओम... हरी
उत्तप्रदेशीय : हम लोगों के विचार अभी तक पचास वर्ष पुराने ही हैं। अभी तक हम इन झूठे ढकोसलों में ही बँधे हैं
बंगाली : (पश्चाताप करते हुए) ई तो बहुत ही बिछो है। अरे! (आश्चर्य से) गोजराती गुड्डा हुआ तो क्या बाबा, है तो गुड्डा ही, क्यों सरदार?
सरदार: हाँ, बा 'शाओ!
(गुड़िया वाले सिन्धी महाशय, उनकी पत्नी आदि कुछ लोग मंच पर आते हैं।)
गुजराती : (उन्हें देखकर) मुझे पता नहीं था कि इन लोगों के इतने ओछे विचार हैं। मैं तो समझता था, काफी पढ़े-लिखे लोग हैं, इज्जतदार लोग हैं, सम्बन्ध होने से और प्रेम बढ़ेगा....
सेठ : थे पैली लड़की वाला न थांको गुड्डो कोणी दिखायो हो कांई?
गुजराती : ये मेरे अच्छे दोस्त हैं सेठजी ! इनकी पत्नी भी मेरी पत्नी की पक्की सहेली है।
श्रीमती गुजराती : (तुनकर गर्व से) यहाँ मेरे गुड्डे पर लट्टू हुई थी। सात बार इन्होंने कहा, मैंने ही भरी। इनकी गुड़िया जैसी कई गुडियाँ काजल डाले बैठी हैं, मेरे गुड्डे के लिये। क्या कमी है गुड़ियों की ?
सेठ : फेर कांई झगड़ो है सांई जी ई रिश्ता स्यूं तो आपको प्रेम ही बढ़ सी
सरदार : (गुड़िया की तरफ के लोगों की ओर मुँह करके) आप नू पता नहीं सी पेल्ले की गुड्डा गुजराती है?
सिंधी : सब कुछ पता था सरदार जी, पर आप ही सोचिए कि मेरी गुड़िया तो सिंधी है...
श्रीमती सिंधी : और उनका गुड्डा गुजराती कहाँ गुजरात, कहाँ सिन्ध? न खान-पान मिलता है न पहनावा, न बोली, न भाषा।
बंगाली: तो ईश में की हो गया बाबा? ये तो शोमाज के सामने एक बहुत बड़ा आदर्शों रखता है आप लोग। ई शब हीमत का काम है बाबा...हीमत का... ।
श्रीमती सिंधी : लेकिन बंगाली बाबू, जब मेरी गुड़िया सिंधी भाषा में बोलेगी तो यह गुजराती गुड्डा कैसे समझेगा?
सिंधी : और जब इनका गुड्डा गुजराती बोलेगा तो मेरी गुड़िया क्या समझेगी?
श्रीमती सिंधी : और जब एक-दूसरे की भाषा ही नहीं समझेंगे तो जिन्दगी मुख से कैसे कटेगी?
श्रीमती गुजराती : (तुनकते हुए) ठीक है, तुम अपनी गुड़िया किसी सिंधी जानने वाले को ही ब्याहना (गुजराती महाशय का हाथ पकड़ कर उठाते हुए), उठिये आप फालतू ही इतने दुःखी क्यों होते हैं?
सिंधी : (सामने खड़े पंडित को देखकर) पंडित जी आप अपना सामान समेट लीजिये, यह शादी नहीं होगी। (गुजराती महाशय की तरफ मुँह कर) आप बारात ले जा सकते हैं।
बंगाली : सिंधी मोशाय, आप तो भली प्रकार हिन्दी बोलता है। आपकी गुड़िया भी बोल शकता?
श्रीमती सिंधी : क्यों नहीं? मेरी गुड़िया भी अच्छी तरह हिन्दी बोल सकती है। मैं भी इधर हिन्दुस्तान में पैदा हुई हूँ और मेरी गुड़िया भी, फिर हिन्दी क्यों नहीं जाँनूगी ?
बंगाली : और गोजराती मोसाय, आप भी हिंदी बोलता है, तो आपका गुडडा भी अच्छी तरह हिन्दी बोलता होगा ?
गुजराती : बहुत अच्छी तरह मोशाय। हम सब हिन्दी लिख सकते हैं, पढ़ सकते हैं, समझ सकते हैं।
कई स्वर : तब फिर झगड़ा कैसा?
श्रीमती सिंधी : आप भी हिन्दी बोल सकते हैं न बंगाली बाबू?
बंगाली : क्यों ना ही? हम हिन्दी बोलता है, हिन्दी समझता है, हिन्दी पढ़ सकता है
श्रीमती सिंधी : और आप सरदार जी ?
सरदार : पेंजी साड्डा तो सारा बीबी बच्चा हिन्दी जांदा सी। ईदर राजस्थान में आकर रहण लगे तो बच्चा लोग हिन्दी ही बोलता सी पेंजी और हम दो साल मद्रास रहे तो हमारा बीबी उदर की भाषा सीख गई। हम कलकत्ता रहें पेंजी तो बंगला भाषा सीखा....
बंगाली : अम भी साऊथ में रहे, तमिल सीखा। इदर हमारी पोत्नी राजस्थानी बोलता.....
सेठ : अरे म्हें तो सात बरस कलकत्ता, तीन बरस आसाम, अर पाँच बरस तईं हैदराबाद रहयो हूँ सब जग री भाषा, सीखी भैणजी।
श्रीमती सिंधी : (व्यंग से) तो फिर थोड़ी देर पहले आप लोगों के बीच कैसा झगड़ा था?
श्रीमती : (एकदम) बस, बिल्कुल वैसा ही गुजराती झगड़ा अब है ।
श्रीमती सिंधी : (दृढ़ता से) मैं अपनी गुड़िया हरगिज उस गुड्डे से नहीं ब्याहूँगी जिसकी बारात में आये लोगों के विचार इतने ओछे हों।
सिंधी : जो खुद तो मन में भाषा और प्रान्त के भेदभाव पाले हुए हैं और दूसरों को सीख देते हैं ।
श्रीमती सिंधी : जो खुद, मेरा पंजाब, मेरा बंगाल, मेरा उत्तर प्रदेश, मेरा राजस्थान कहते हैं- जिन्हें यह ज्ञान नहीं है कि सारा देश एक है।
सिंधी : अच्छा हुआ शादी से पहले ही इनकी भावनाएँ पता चल गईं, नहीं तो बाद में मुझे कितना पछताना पड़ता....आप लोग बारात ले जा सकते हैं...
(अन्दर की ओर जाने के लिये मुड़ता है । )
श्रीमती संधी : जिन लोगों के मन में अब भी भाषा और प्रान्त की सीमाओं की रेखाएँ गहरी हैं और जो देश को बँटा हुआ रखना चाहते हैं, उन लोगों के साथ मेरी गुड़िया का सम्बन्ध कभी नहीं होगा।
(अन्दर जाने के लिये मुड़ जाती है।)
गुजराती : कैसी विचित्र बात है, आजादी के 45 के वर्ष बाद भी हमारे देश के पढ़े-लिखे लोग भी भारतमाता का खंडित रूप देखना चाहते हैं (गुस्से में) मुझे पता नहीं था कि मैं जिन लोगों को बारात में जा रहा हूँ उनके ओछे विचारों के कारण एक श्रेष्ठ काम में बाधा पड़ेगी और मुझे इतना अपमानित होना पड़ेगा, चलिए।
(सब बारातियों को चलने का संकेत देता है।)
श्रीमती गुजराती : इन लोगों के लिये देश सर्वोपरि नहीं है। देश की अखंडता से इन्हें प्यार नहीं है। देश की एक भाषा इन्हें पसन्द नहीं है.....इन्हें चाहिये केवल इनके अपने प्रान्त... इनकी अपनी भाषा... बस... स्वार्थ और संकीर्णता की ऐसी मिसाल धरती पर कहीं नहीं मिलेगी।
बंगाली : (अपने कान पकड़कर) हमसे गलती हुआ बाबा, हम क्षमा माँगता। हम कभी सपने में भी नहीं सोचा कि हमारी तुच्छ भावना से इदर गजब हो जायेगा। हम को क्षमा करो.... आज तुम लोगो ने हमारा आँख खोल दिया।
सरदार : सान्नू भी माफ करो बा शाओ, साड्डे वास्ते तो सारी भारत भूमि हमारी है... पंजाब में पैदा हुए पैंजी तो उस धरती से भी सानू प्यार है, पर ये बात सही है बा शाओ कि देश सर्वोपरि है... सबसे ऊपर है ।
सेठ : म्हें तो थाने पैले ही कियो रे क ओ म्हारो पंजाब, म्हारो गुजरात, म्हारो उत्तर प्रदेश, म्हारो दक्खन, म्हारी भाषा.... अ सब कांई होवे है। सारो देश एक है... अ तो जियां एक परिवार में कोई को नाम राधाकिशन है तो कोई को माँगीलाल, तो कोई को गंगाराम..... अरे परिवार तो एक ही है.... परिवार रा मेम्बरां रा नाम अलग रखा दियां कांई... देश तो एक हीज है म्हारा बाबा।
उत्तरप्रदेशीय : आप सही कहते हैं सैठ जी। सारा देश एक परिवार है, हमें परिवार के सदस्यों की तरह रहना चाहिये।
सेठ : तो आओ फेर (हाथ फैलाता है) दूरी की बात की, आओ... ।
(सब एक-दूसरे से गले मिलते हैं, पीछे धीमे-धीमे शहनाई का स्वर उभरता है।)
(श्रीमती गुजराती और श्रीमती सिंधी के चेहरे पर मुस्कारहट है।)
श्रीमती सिंधी : शहरनाई तेज करो। पंडित जी शादी की तैयारी करो। शादी होगी और अब धूमधाम से होगी।
श्रीमती गुजराती : (सबको संबोधन करते हुए) अगर आप लोगों ने शुरू से ही ऐसी भावना रखी होती तो हम औरतों को अन्दर बैठकर यह नाटक नहीं रचना पड़ता।
श्रीमती सिंधी : आपसी भेदभावको मिटाने के लिए ही तो हमने यह शादी तय की थी।
(सब एक-दूसरे से गले मिल रहे होते हैं तभी भीतर शादी के गीत गाये जाने की ध्वनि गूँजने लगती है, थोड़ी ही देर बाद ऊँचे स्वर में यह गीत गूँजने लगता है।)
लड़के : एक ही धरती,
एक गगन है
एक है देश हमारा
लड़कियाँ : एक हिमालय
एक है गंगा
एक है वेष हमारा
लड़के: एक ही रंग है
लड़कियाँ : एक ही ढंग है।
सब: एक है देश हमारा
लड़के: इस धरती पर
गिरजे भी हैं
मन्दिर भी हैं
मस्जिद भी
गुरूद्वारा भी
लड़की : सबका बोझ उठाये कब से
देखो एक ही धरती
दोनों: आ..... ओ.........
आ..... ओ.........
लड़का : आओ हम सब मिलकर एक लगायें नारा.......
लड़की: हम सब एक हैं
लड़का : हम सब एक हैं
सब: है हिन्दुस्तान हमारा
है हिन्दुस्तान हमारा
है हिन्दुस्तान हमारा
(स्वर धीमा होता जाता है।)
(परदा गिरता है।)