करनी का फल सम्पूर्ण कहानी । Karene Ka Faal ki Full Story In Hindi




करनी का फल



एक गाँव में एक वृद्धा रहती थी। उसके एक दस साल का पुत्र था। एक दिन वृद्धा से उसके पुत्र ने पूछा— "माँ ! गाँव में अन्य लोगों के पास अच्छे-पक्के मकान हैं और हमारे पास यह फूस की झोंपड़ी क्यों है? हमें पक्के मकान क्यों नहीं मिले?" माँ की आँखें पुत्र से ऐसी भोली बातें सुन छलछला आयीं। वह बोली- “बेटा ! यह सब करनी के फल हैं। भगवान उसे वैसे ही फल देता है, जैसा वह कार्य करता है।" यह सुनकर भोला पुत्र बोला- “माँ! भगवान कहाँ मिलेंगे? मैं उनसे मिलूँगा।" इस पर बूढ़ी माँ हँसती हुई बोली-“बेटा! हमारे ऐसे कर्म कहाँ जो भगवान मिलें? भगवान ऋषि-मुनियों को मिलते हैं। "

     "नहीं माँ! मैं तो भगवान से मिलूँगा।" इस प्रकार उसने बालहठ शुरू कर दी और भगवान को ढूँढ़ने जाने की योजना बना ली। सारे गाँव में यह चर्चा फैल गई। गाँव के राजा को भी मालूम हुआ तो उसने उसको बुलवाया। राजा बोला- “भई, तुम जातो रहे ही हो, भगवान से पूछना कि हमारे राजा के सन्तान क्यों नहीं होती है। "



तभी मन्त्री बोला-“नन्हें ! भगवान से तुम मेरी बाबत भी यह पूछना कि उसके घर की दरिद्रता दूर क्यों नहीं होती।" "अच्छा" कहता हुआ वह - बालक भगवान की तलाश में जंगलों की ओर बढ़ गया।

जंगलों को पार करता वह एक भयानक और डरावने स्थान पर पहुँचा। रात होने में ज्यादा समय न था। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसी पेड़ पर एक पति-पत्नी का जोड़ा अलग-अलग खटोलों में आराम कर रहा था। पति को उस नन्हें पर दया आ गई और वह अपनी पत्नी से बोला- “देखो, उस नन्हें को कोई जानवर खा जाएगा। इसलिए हम दोनों एक खटोले में सो जायें और एक खटोला उस बच्चे को दे दें।" पत्नी तुनक कर बोली-“ज्यादा दया उमड़ रही है तो स्वयं नीचे बैठ जाओ और उसे खटोले में बैठा दो।"

    पति को बात लग गई। उसने वैसा ही किया। रात को जंगली जानवर पति को मारकर घसीट ले गए। सवेरा हुआ । नन्हा पेड़ से उतरकर अपने ध्येय के लिए बढ़ा। वह अब एक तालाब पर जा पहुँचा। उसने सोचा कि उसे अब भगवान नहीं मिलेंगे, पर तभी ब्राह्मण के रूप में भगवान प्रकट हुये और उससे बोले-“तुम्हें कुछ पूछना हो तो पूछो।"


वह बोला-"चतुर्भुज रूप में आओ, तब पूछूंगा।"


भगवान तुरन्त चतुर्भुज रूप में आए। बालक ने प्रणाम कर पहले राजा का प्रश्न पूछा। भगवान बोले-“राजा को अपने महल की अमुक दीवार तुड़वा देनी चाहिए। दीवार में उसे जो पुस्तक प्राप्त हो उसे उसका पाठ करना चाहिए।" 

     भगवान बोले-"इसके बारे में तुम्हें राजा का होने वाला पुत्र बताएगा।


बालक लौट आया। राजा और मन्त्री को उनके प्श्नों के उत्तर बताये। उन्होंने वैसा ही किया। रानी गर्भवती हो गई और मन्त्री की दरिद्रता मिट गई। समय आने पर रानी के पुत्र उत्पन्न हुआ। कुछ वर्षों बाद राजा ने नन्हें को बुलाकर कहा- "तुम के अपने प्रश्नों के उत्तर मेरे पुत्र से पूछ लो।" 

      नन्हें ने अपने कर्मफल के बारे में पूछा। वह शिशु बोला- "मूर्ख नन्हें! अभी तक तुम नहीं समझे? मैं वही पति हूँ जिसने तुम्हें खटोले में बिठाया था और स्वयं जंगली जानवरों के हाथों मारा गया था।

       अब मैं एक बहुत बड़े राजा का पुत्र हूँ और समय आने पर राजा भी बनूँगा। था और स्वयं जंगली जानवरों के हाथों मारा गया था। अब मैं एक बहुत बड़े राजा का पुत्र हूँ और समय आने पर राजा भी बनूँगा। मेरी पत्नी जिसने मुझे तिरस्कृत किया था, वह सुअरी बनी गन्दे नाले में पड़ी है। यही तो कर्मफल हैं नन्हा सोचता हुआ अपने घर लौट आया। अब उसे अपनी स्थिति के प्रति कोई असन्तोष नहीं था।


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हम सब एक हैं सम्पूर्ण कहानी । Hum Sab Ek Hai Full Story In Hindi

पात्र :

गुड्डे वाली लड़की गुड़िया वाली लड़की गुजराती सिंधी


गुड्डे वाला लड़का गुजराती


गुड़िया वाला लड़का सिंधी


सरदार, बंगाली, राजस्थानी सेठ, उत्तरप्रदेश के पंडित जी तथा दो-तीन पात्र और ढोल-नगाड़े, बैंड, रोशनी व घोड़े वाले ।


सरदार : की सत सिरी अकाल बादशाओ, सान्नू उत्थे ही छड्ड आये यार । (र पर जोर देकर बोलता है।) (सरदार एक खाली कुरसी पर बैठ जाता है। पास ही अटैची रख लेता है। प्लेटों में मिठाई आदि बँटना शुरू होता है तभी सरदार जी बोल पड़ते हैं।)

सरदार : ओ बादशाओ, भूख लगी है यार सान्नू भी कुछ देओ यार । ( सरदार को चाय-नाश्ता दिया जाता है।)


बंगाली : (चाय की चुस्की लेते हुए) सरदार, ओ राजस्थान शेठ पकोड़ामल को कीदर छोड़ा बाबा... ।


सरदार : (आश्चर्य से, मुँह में मिठाई का टुकड़ा है) ओ बादशाओ, सेठ इत्थे नहीं पोंच्या? (आँख मूँदकर, हाथ ऊपर उठाते हुए) वाहे गुरु.... वाहे गुरु... कमाल किता राजस्थानी सेठ ने बा'शाओ। (हँसते हुए) ते खरगोश और कछुए दी काहणी हो गई यार....

(सेठ का प्रवेश परेशान-सा हाँफते हुए कपड़े की पोटली बगल में हैं। सरदार की अन्तिम बात सुन लेता है, हँसते हुए)


सेठ : अरे, म्हारो बेटो ओ पंजाबी काछुओ महारा सूँ पैलो पुगग्यो कांई? (सेठ को देखकर सब मुस्करा देते हैं। दूल्हे का पिता सेठ को आदर से बैठाता है।)


उत्तरप्रदेशीय : सेठ साहब, आपको यात्रा में कोई कष्ट तो नहीं हुआ ?


सेठ : (पसीना पोंछते हुए) अरे, कष्ट री बातां पछे करज्यो। (धोती के पल्ले) से हवा करते हुए और इधर-उधर देखकर) अरे ल्या भाई ल्या, कठौ चलेग्यो...? (पेट पर हाथ फेरते हुए) अठे तो प्राण निकलग्या भूखा मरता का (एक खाने-पीने का सामान लाने वाले को रोककर) एक लोटो दूध और रबड़ी लिया भाया, बाकी पर्छे देखी जास्सी... (सब लोग हँसते हैं।)


सरदार: (बँधी हुई दाढ़ी पर नीचे से ऊपर की ओर हाथ फेरते हुए) सेठ, साड्डे पंजाब में तू चल यार, तेनू पेट भर लस्सी, पेड़ेवाली खिलावां।

(पेड़ेवाली पर जोर देकर)

बंगाली: सेठ मोशाय! तुम तो हमारा बंगाल देश चलो तो रोशगुल्ल से तुम्हारा ई पेट भर दें बाबा।


उ. प्र. वाला : सेठजी इनके पंजाब में बस एक पेड़ा बे और इनके बंगाल में केवल रसगुल्ला आप तो हमारे उत्तरप्रदेश चलिए, छप्पन तरह की मिठाई से हम आपके शरीर की इस टंकी को भर देंगे।


सेठ : अरे, पण म्हारा देश में मिठाई की किसी कमी हैं, म्हारा यार.... हूँ सब जाणूं हूँ, कांई पड्यो है ई का पंजाब में, अर कांई धर्यो है ई का बंगाल में, अर लालाजी कांई है थारां उत्तरप्रदेश में ।


सरदार: देखो सेठ, हम तुम्हारी इज्जत करते हैं, तुम हमारे पंजाब दे वास्ते कुछ ऐसा वैसा न सोचना, न बोलना। - हमारा पंजाब ना होता तो तुम सब भूख से मर जाता, दुश्मन तुम्हारे सीने पर आ बैठता.... असली घी-दूध खाते हैं सेठ, तुम्हारी तरह दाल-रोटी या इनकी तरह सूखी मछली नहीं।


बंगाली : सरदार तुम अमार वाश्ते ऐसा नहीं बोलो। तुमको इतिहास का ज्ञान नहीं है सरदार। हम माच्छी खाने वाले लोगों ने ही क्रान्ति किया और आजादी लिया।



सरदार : रहन दे मोशाय, हम पंजाब वालों ने खून का दरिया बहाया, तब आजादी मिली, समझे.... दुश्मन को ईदर कदम नहीं रखने दिया कभी....। (एकाएक भीतर से तेज नारी स्वर, लगभग चीखते हुए )


नारी स्वर: बंद करो शहनाई।

(एक लड़की आकर गुड्डे के पिता को चुपचाप कान में कुछ कहती हैं। और दोनों अन्दर चले जाते हैं। दूसरे ही क्षण अन्तर से तेज स्वर सुनाई देता है।)


पुरुष स्वर : (गुड्डे का पिता) यह कैसे हो सकता है? यह तो सरासर हमारा अपमान है। (कहता हुआ मंच पर


आता है।) आपको पहले सोचना चाहिये था। हमें घर बुलाकर अपमानित किया जा रहा है।


दो तीन स्वर : (बारातियों के) क्या हुआ गुजराती बाबू? (चिंता और आश्चर्य से)


गुजराती : कहते हैं ये शादी नहीं होगी।



सेठ : (आश्चर्य से) शादी नहीं होगी? कोई कारण भी तो होसी, शादी क्यों नहीं होगी ?


गुजराती :  कारण सुनकर दंग रह जाएँगे सेठजी, कहते हैं गुड़िया सिंधी है, हम गुजराती गुड्डे से शादी नहीं करेंगे।


श्रीमती गुजराती : नहीं करते न सही। कौन हमारा गुड्डा कुँआरा रह जाएगा।


सरदार : (स्वतः) वाहे....गुरु वाहे गुरु..... (आँखें मीचे हाथ उठाकर)


सेठ : (स्वतः) हरी ओम.... ओम... शिव शिव ! हरी ओम... हरी


उत्तप्रदेशीय : हम लोगों के विचार अभी तक पचास वर्ष पुराने ही हैं। अभी तक हम इन झूठे ढकोसलों में ही बँधे हैं


बंगाली  : (पश्चाताप करते हुए) ई तो बहुत ही बिछो है। अरे! (आश्चर्य से) गोजराती गुड्डा हुआ तो क्या बाबा, है तो गुड्डा ही, क्यों सरदार? 

सरदार: हाँ, बा 'शाओ!

(गुड़िया वाले सिन्धी महाशय, उनकी पत्नी आदि कुछ लोग मंच पर आते हैं।)


गुजराती : (उन्हें देखकर) मुझे पता नहीं था कि इन लोगों के इतने ओछे विचार हैं। मैं तो समझता था, काफी पढ़े-लिखे लोग हैं, इज्जतदार लोग हैं, सम्बन्ध होने से और प्रेम बढ़ेगा....


सेठ : थे पैली लड़की वाला न थांको गुड्डो कोणी दिखायो हो कांई? 


गुजराती : ये मेरे अच्छे दोस्त हैं सेठजी ! इनकी पत्नी भी मेरी पत्नी की पक्की सहेली है।


श्रीमती गुजराती : (तुनकर गर्व से) यहाँ मेरे गुड्डे पर लट्टू हुई थी। सात बार इन्होंने कहा, मैंने ही भरी। इनकी गुड़िया जैसी कई गुडियाँ काजल डाले बैठी हैं, मेरे गुड्डे के लिये। क्या कमी है गुड़ियों की ?


सेठ : फेर कांई झगड़ो है सांई जी ई रिश्ता स्यूं तो आपको प्रेम ही बढ़ सी


सरदार : (गुड़िया की तरफ के लोगों की ओर मुँह करके) आप नू पता नहीं सी पेल्ले की गुड्डा गुजराती है?


सिंधी : सब कुछ पता था सरदार जी, पर आप ही सोचिए कि मेरी गुड़िया तो सिंधी है...


श्रीमती सिंधी :  और उनका गुड्डा गुजराती कहाँ गुजरात, कहाँ सिन्ध? न खान-पान मिलता है न पहनावा, न बोली, न भाषा।


बंगाली: तो ईश में की हो गया बाबा? ये तो शोमाज के सामने एक बहुत बड़ा आदर्शों रखता है आप लोग। ई शब हीमत का काम है बाबा...हीमत का... ।


श्रीमती सिंधी : लेकिन बंगाली बाबू, जब मेरी गुड़िया सिंधी भाषा में बोलेगी तो यह गुजराती गुड्डा कैसे समझेगा?


सिंधी : और जब इनका गुड्डा गुजराती बोलेगा तो मेरी गुड़िया क्या समझेगी?


श्रीमती सिंधी : और जब एक-दूसरे की भाषा ही नहीं समझेंगे तो जिन्दगी मुख से कैसे कटेगी?


श्रीमती गुजराती : (तुनकते हुए) ठीक है, तुम अपनी गुड़िया किसी सिंधी जानने वाले को ही ब्याहना (गुजराती महाशय का हाथ पकड़ कर उठाते हुए), उठिये आप फालतू ही इतने दुःखी क्यों होते हैं?


सिंधी : (सामने खड़े पंडित को देखकर) पंडित जी आप अपना सामान समेट लीजिये, यह शादी नहीं होगी। (गुजराती महाशय की तरफ मुँह कर) आप बारात ले जा सकते हैं।


बंगाली : सिंधी मोशाय, आप तो भली प्रकार हिन्दी बोलता है। आपकी गुड़िया भी बोल शकता?


श्रीमती सिंधी : क्यों नहीं? मेरी गुड़िया भी अच्छी तरह हिन्दी बोल सकती है। मैं भी इधर हिन्दुस्तान में पैदा हुई हूँ और मेरी गुड़िया भी, फिर हिन्दी क्यों नहीं जाँनूगी ? 


बंगाली : और गोजराती मोसाय, आप भी हिंदी बोलता है, तो आपका गुडडा भी अच्छी तरह हिन्दी बोलता होगा ?


गुजराती : बहुत अच्छी तरह मोशाय। हम सब हिन्दी लिख सकते हैं, पढ़ सकते हैं, समझ सकते हैं।


कई स्वर : तब फिर झगड़ा कैसा?


श्रीमती सिंधी : आप भी हिन्दी बोल सकते हैं न बंगाली बाबू?


बंगाली : क्यों ना ही? हम हिन्दी बोलता है, हिन्दी समझता है, हिन्दी पढ़ सकता है


श्रीमती सिंधी : और आप सरदार जी ?


सरदार : पेंजी साड्डा तो सारा बीबी बच्चा हिन्दी जांदा सी। ईदर राजस्थान में आकर रहण लगे तो बच्चा लोग हिन्दी ही बोलता सी पेंजी और हम दो साल मद्रास रहे तो हमारा बीबी उदर की भाषा सीख गई। हम कलकत्ता रहें पेंजी तो बंगला भाषा सीखा....


बंगाली : अम भी साऊथ में रहे, तमिल सीखा। इदर हमारी पोत्नी राजस्थानी बोलता.....


सेठ :  अरे म्हें तो सात बरस कलकत्ता, तीन बरस आसाम, अर पाँच बरस तईं हैदराबाद रहयो हूँ सब जग री भाषा, सीखी भैणजी।


श्रीमती सिंधी : (व्यंग से) तो फिर थोड़ी देर पहले आप लोगों के बीच कैसा झगड़ा था?


श्रीमती : (एकदम) बस, बिल्कुल वैसा ही गुजराती झगड़ा अब है ।


श्रीमती सिंधी : (दृढ़ता से) मैं अपनी गुड़िया हरगिज उस गुड्डे से नहीं ब्याहूँगी जिसकी बारात में आये लोगों के विचार इतने ओछे हों।


सिंधी : जो खुद तो मन में भाषा और प्रान्त के भेदभाव पाले हुए हैं और दूसरों को सीख देते हैं ।


श्रीमती सिंधी : जो खुद, मेरा पंजाब, मेरा बंगाल, मेरा उत्तर प्रदेश, मेरा राजस्थान कहते हैं- जिन्हें यह ज्ञान नहीं है कि सारा देश एक है।


सिंधी : अच्छा हुआ शादी से पहले ही इनकी भावनाएँ पता चल गईं, नहीं तो बाद में मुझे कितना पछताना पड़ता....आप लोग बारात ले जा सकते हैं...

(अन्दर की ओर जाने के लिये मुड़ता है । )


श्रीमती संधी : जिन लोगों के मन में अब भी भाषा और प्रान्त की सीमाओं की रेखाएँ गहरी हैं और जो देश को बँटा हुआ रखना चाहते हैं, उन लोगों के साथ मेरी गुड़िया का सम्बन्ध कभी नहीं होगा।

(अन्दर जाने के लिये मुड़ जाती है।)


गुजराती : कैसी विचित्र बात है, आजादी के 45 के वर्ष बाद भी हमारे देश के पढ़े-लिखे लोग भी भारतमाता का खंडित रूप देखना चाहते हैं (गुस्से में) मुझे पता नहीं था कि मैं जिन लोगों को बारात में जा रहा हूँ उनके ओछे विचारों के कारण एक श्रेष्ठ काम में बाधा पड़ेगी और मुझे इतना अपमानित होना पड़ेगा, चलिए।

(सब बारातियों को चलने का संकेत देता है।)


श्रीमती गुजराती : इन लोगों के लिये देश सर्वोपरि नहीं है। देश की अखंडता से इन्हें प्यार नहीं है। देश की एक भाषा इन्हें पसन्द नहीं है.....इन्हें चाहिये केवल इनके अपने प्रान्त... इनकी अपनी भाषा... बस... स्वार्थ और संकीर्णता की ऐसी मिसाल धरती पर कहीं नहीं मिलेगी।


बंगाली : (अपने कान पकड़कर) हमसे गलती हुआ बाबा, हम क्षमा माँगता। हम कभी सपने में भी नहीं सोचा कि हमारी तुच्छ भावना से इदर गजब हो जायेगा। हम को क्षमा करो.... आज तुम लोगो ने हमारा आँख खोल दिया।


सरदार : सान्नू भी माफ करो बा शाओ, साड्डे वास्ते तो सारी भारत भूमि हमारी है... पंजाब में पैदा हुए पैंजी तो उस धरती से भी सानू प्यार है, पर ये बात सही है बा शाओ कि देश सर्वोपरि है... सबसे ऊपर है ।


सेठ : म्हें तो थाने पैले ही कियो रे क ओ म्हारो पंजाब, म्हारो गुजरात, म्हारो उत्तर प्रदेश, म्हारो दक्खन, म्हारी भाषा.... अ सब कांई होवे है। सारो देश एक है... अ तो जियां एक परिवार में कोई को नाम राधाकिशन है तो कोई को माँगीलाल, तो कोई को गंगाराम..... अरे परिवार तो एक ही है.... परिवार रा मेम्बरां रा नाम अलग रखा दियां कांई... देश तो एक हीज है म्हारा बाबा।


उत्तरप्रदेशीय : आप सही कहते हैं सैठ जी। सारा देश एक परिवार है, हमें परिवार के सदस्यों की तरह रहना चाहिये।


सेठ :  तो आओ फेर (हाथ फैलाता है) दूरी की बात की, आओ... ।

(सब एक-दूसरे से गले मिलते हैं, पीछे धीमे-धीमे शहनाई का स्वर उभरता है।)

(श्रीमती गुजराती और श्रीमती सिंधी के चेहरे पर मुस्कारहट है।)


श्रीमती सिंधी : शहरनाई तेज करो। पंडित जी शादी की तैयारी करो। शादी होगी और अब धूमधाम से होगी।


श्रीमती गुजराती : (सबको संबोधन करते हुए) अगर आप लोगों ने शुरू से ही ऐसी भावना रखी होती तो हम औरतों को अन्दर बैठकर यह नाटक नहीं रचना पड़ता।


श्रीमती सिंधी : आपसी भेदभावको मिटाने के लिए ही तो हमने यह शादी तय की थी।

(सब एक-दूसरे से गले मिल रहे होते हैं तभी भीतर शादी के गीत गाये जाने की ध्वनि गूँजने लगती है, थोड़ी ही देर बाद ऊँचे स्वर में यह गीत गूँजने लगता है।)


लड़के : एक ही धरती,

            एक गगन है

             एक है देश हमारा

लड़कियाँ : एक हिमालय

                एक है गंगा

                एक है वेष हमारा


लड़के: एक ही रंग है

लड़कियाँ : एक ही ढंग है।

सब: एक है देश हमारा


लड़के: इस धरती पर

          गिरजे भी हैं

           मन्दिर भी हैं

           मस्जिद भी

           गुरूद्वारा भी


लड़की : सबका बोझ उठाये कब से

देखो एक ही धरती


दोनों: आ..... ओ.........

आ..... ओ.........


लड़का : आओ हम सब मिलकर एक लगायें नारा.......

लड़की: हम सब एक हैं

लड़का : हम सब एक हैं


सब: है हिन्दुस्तान हमारा

       है हिन्दुस्तान हमारा

      है हिन्दुस्तान हमारा


(स्वर धीमा होता जाता है।)

(परदा गिरता है।)


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पीलिया रोग के कारण और निवारण । पीलिया बीमारी के क्या लक्षण होते हैं?


दो शब्द



जीवन में सफाई का अत्यन्त महत्त्व है। यह सामग्री पढ़कर आप अपने जीवन को निरोगी रख सकते हैं। बस जरा-सी सावधानी बरतिए और रोगों से छुटकारा पाइए।




पीलिया रोग


पीलिया रोग एक प्रकार के जीवाणु द्वारा होता है एवं यह जीवाणु जिगर एवं रक्त के लाल कणों को प्रभावित करता है जिसके कारण मानव शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निश्चित समय के बाद अधिक विखण्डित होने से बनने वाला रंजक जिसे बिलीरूबिन कहते है जिसका रंग पीला होता है। इस प्रकार जब यकृत से निकलने वाली पित्त वाहिनी मार्ग में रुकावट होने या यकृत और पित्ताशय में से निकलने वाली पित्त वाहिनी के मिलने के स्थान पर अवरोध होने से तथा पित्त आंत्र में जाने के बजाय रक्त में मिल जाता है तो पीलिया रोग प्रकट होता है। उससे शरीर का अंग



भी पीला दिखता है और सामान्य जन इसे पीलिया रोग कहते हैं।


इस प्रकार वाईरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को ही पीलिया रोग कहते है। शुरु में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, परन्तु जब उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते है, शरीर की त्वचा भी पीली हो जाती है, पेशाब का रंग भी एकदम पीला हो जाता है। रोगी के मल का रंग सफेद हो जाता है। कुछ अन्य रोगों जैसे पित्ताशय में पथरी व सूजन मलेरिया,


नवजात शिशु में यकृत शोध, जींगरकैंसर इत्यादि में भी यह पीलिया रोग हो जाता है। जिस जीवाणु से यह रोग होता है। उसके आधार पर भी पीलिया रोग का प्रकार निर्धारित होता है।.

        हैपेटाइटिस ए, हैपेटाइटिस बी, हैपेटाइटिस सी डीई आदि। यकृत की इन बीमारियों को अवधि के अनुसार अल्पावधि (एक्यूट) एवं दीर्घावधि (क्रॉनिक) हेपेटाइटिस में विभाजित करते है। एक्यूट हेपेटाइटिस मुख्यतः वायरस के कारण होता है।

                  यह रोग ज्यादातर ऐसे स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों


को होता है जो लोग व्यक्तिगत व वातावरणीय सफाई एवं स्वच्छता पर ध्यान नहीं देते है या कम ध्यान देते हैं। पौलिया रोग का वायरस कमोबेस हर समुदाय में हर मौसम में स्थानिक रूप से मौजूद रहता है, जो पीलिया रोग से ग्रसित व्यक्ति से निरोग मनुष्य के शरीर में प्रत्यक्ष रूप से अंगुलियों से और अप्रत्यक्ष रूप से रोगी के मल से या मक्खियों द्वारा पहुंच जाते है, इससे स्वस्थ मनुष्य भी रोग ग्रस्त हो जाता है।

                       ऐसा भी हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंखे नाखून या शरीर आदि पीले नहीं दिख रहे हो, परन्तु यदि वे इस रोग से ग्रसित हो तो अन्य रोगियों की तरह ही रोग को फैला सकते है।

                   हैपेटाइटिस बी, सी एवं डी रक्त व रक्त व रक्त से निर्मित पदार्थों के आदान-प्रदान से फैलता है। इससे वह व्यक्ति जोइस रोग से पीडित होता है और अपना रक्त दूसरे व्यक्ति को देता है, उसे भी रोगी बना देता है। यहां रक्त देने वाला (एड्स रोग की भांति) रोग का वाहक बन जाता है।


           इस प्रकार के वायरस दुषित रक्त इन्जेक्शनों के द्वारा ग्रहण किये गये मादक पदार्थों तथा असुरक्षित यौन संबंधों से फैलते हैं। यह बीमारी लंबे समय तक बनी रह सकती है एवं कालांतर में गंभीर रूप धारण कर सकती है। इन वायरसों का पता खून की विशेष जांचे से ही लगाया जा सकता है। शराब का अधिक सेवन करने वाले व्यक्तियों को पीलिया होने की आशंका रहती है जिसे शराब जनित पीलिया (एल्कोलिक हेपेटाइटिस) कहते है। इसमें मरीज को तेज बुखार हो जाता है ओर उसका जिगर बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार की दवाइयां भी कभी-कभी जिगर को नुकसान पहुंचाकर पीलिया का कारण बन सकती है तब उन दवाओं को बंद कर चिकित्सक के परामर्श से खून की जांच करानी चाहिए।


                             क्रोनिक हेपेटाइटिस छ: माह से अधिक समय तक चलने वाले जिगर की बीमारियों को दीर्घ अवधि हेपेटाइटिस कहा जाता है और यह बीमारी बी सी डी वायरस से होती है। इस रोग के निवारण हेतु कुछ दवाइयां उपलब्ध है जिनसे 50 प्रतिशत रोगियों के ठीक होने की संभावना होती है। कालान्तर में यह रोग सिरोसिस में बदल जाता है जिसमें रोगी के पैरों में सूजन, पेट में पानी, खुन की उल्टी तथा बेहोशी जैसे खतरनाक लक्षण हो सकते है। ऐसे रोगियों की चिकित्सा विशेष दक्षता प्राप्त चिकित्सक द्वारा ही हो सकती है। फिर भी इनका पूर्ण रूप से स्वस्थ होना कठिन होता है।


     वाइरल हैपेटाइटिस ए या डी, ई में इत्यादि पौलिया तो सारे संसार में पाया जाता है। पीलिया रोग में रोग की छूत लगने के तीन से छ सतह बाद रोग के निम्न प्रकार से लक्षण प्रकट होते हैं।


रोग के प्रारंभिक लक्षण - हल्का ज्वर, घबराहट, थकान, शरीर में कमजोरी महसूस होना, सिरदर्द व शरीर दर्द, भूख न लगना, चिकनाई वाले पदार्थों से अरुचि, जी मिचलाना, कभी-कभी उल्टी होना, पेट दर्द होना, खुजली होना, गहरा पीला पेशाब आना, शरीर का रंग पीला होना (विशेषकर आंखों एवं नाखून का)

    यह रोग किसी भी आयु के व्यक्ति को हो सकता है, परंतु रोग की उग्रता रोगी के स्वास्थ्य की अवस्था पर निर्भर करती है। जैसे नवजात शिशुओं व उनकी माताओं में यह रोग बहुत उग्र होता है और जानलेवा भी हो सकता है। यदि दशा गर्भवती महिला के लिए संभावित होती है। तो उन्हें ज्यादा समय तक कष्ट देता है। स्वस्थ लोगों पर पीलिया रोग का आक्रमण साधारण ही होता है, परंतु रोग


\

की गहनता के कारण यकृत (लीवर) में कठिन दोष उत्पन्न हो जाता है।

         वे व्यक्ति जो रक्ताल्पता से पीड़ित है और अधिक पित्तवर्धक (कटुरस प्रधान द्रव्य मिर्च गरम मसाला) आदि, अम्ल रस प्रधान नींबू, इमली, आंवला आदि उष्ण, तीक्ष्ण, लवण का सेवन, क्रोध, उपवास, धूप, स्त्रीप्रसंग का अधिक सेवन करते है वे भी पीलिया रोग के शिकार शीघ्र होते है। पीलिया रोगी की आंखें त्वचा और नाखून हल्दी के समान रंगवाले हो जाते है । वस्तुतः इस रोग में उपचार से अधिक



लाभदायक होता है। रोगी को भोजन की रूचि समाप्त हो जाती है। अतः ऐसा रूचिकर पदार्थ उपभोग हेतु देना चाहिए जिसमें रोगी को शक्ति तुरंत मिले। चिकनाई युक्त गरिष्ठ भोजन नुकसान पहुंचाता है। अत: यह उपभोग हेतु नहीं देवे, यह हानिकारक होता है। इस रोग को कोई विशिष्ठ उपचार नहीं है। जिसका विशेष सिद्धांत यकृत (लीवर) को आराम देना है। अतः रोगी को बिस्तर पर पूर्ण आराम देना चाहिए। शर्करा युक्त चावल, दलिया, खिचड़ी, थूली, आलू, गन्ने का रस, चीनी,



ग्लुकोज, गुड, चीकू, पपीता, छाछ, मूली देना चाहिए जबकि प्रोटीनयुक्त भोजन जेसे दाले, मांस, मछली, दूध अण्डा कम देना चाहिए।


      आयुर्वेद के अनुसार रोगी को मूत्र में पित्तरंजक (पीला रंग) द्रव्य के अदृश्य होने तथा मल में उसके दिखने तथा पूर्ण विश्राम देना चाहिए। उसके बाद रोगी को स्नेह कर तिक्त रस युक्त द्रव्यों जिनमें अमलतास, नीम, कुटकी, हल्दी, चिरायता, इन्द्रायण (गंडतुम्बा) आदि औषधियों से युक्त मृदु विरेचन देना चाहिए। मूत्र विरेचन के लिए पूनर्नवा (साठी) का काला या रस देना उत्तम है।


    रोग में परहेज गरिष्ठ एवं चिकनाई युक्त भोजन से रखने के साथ-साथ महत्वपूर्ण बात यह है कि रोगी को एवं उसके परिवार को व्यक्तिगत एवं वातावरण की स्वच्छता पर भी ध्यान देना चाहिए। रोगी के मल से पेयजल स्रोत के दूषित होने पर यह रोग माहमारी का रूप ले लेता है। इसलिए रोगी के मल का निस्तारण समुचित रूप से करना चाहिए, जिससे खाद्य पदार्थ संक्रमित नहीं होवे ।


पीलिया के प्रकोप से बचने के लिए निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए -


1. खाना बनाने, परोसन, खाने से पहले व बाद में, शौच जाने के बाद में हाथ अच्छी तरह साबून से धोना चाहिए। जिन बर्तनों में खाना बनाया जावे या खाया जावे वे भी पूर्ण रूप से स्वच्छ होना चाहिए।

   भोजन को जालीदार अलमारी मे या ढक्कन से ढक कर रखना चाहिए ताकि भोजन को मक्खियां व धूल के संभावित संक्रमण से बचाया जा सके। ताजा, शुद्ध व गर्म भोजन करें, दूध व पानी उबाल कर काम में ले। पीने का । पानी नल हेण्डपम्प या आदर्श कुओं का ही काम लेवें। 

2. मलमूत्र, कुड़ा-करकट सही स्थान पर गड्ढा खोदकर दबाना चाहिए या जलाना चाहिए।

3. गंदे, सड़े, गले कटे हुए फल नहीं खाए ।

4. धूल पडी या मक्खिायां बैठी मिठाई का सेवन नही करे।

5. स्वच्छ शौचालय का प्रयोग करे ।

6. रक्त चढवाने की दशा में हेपेटाइटिस मुक्त रक्त को प्रयोग होवें, यह सुनिश्चित करावें।

7. जैसे एड्स रोग से बचने के लिए सुरक्षित यौन संबंध आवश्यक है, इस रोग से बचने के हेतु भी यही आवश्यक है कि एक बार काम आने वाली सूइयों का ही प्रयोग होवें।

8. हेपेटाइटिस बी के वायरस से बचाव हेतु टीके भी उपलब्ध है। यह टीका प्रत्येक रोगी के रिश्तेदार मेडिकल स्टाफ के लगाया जाना उपयुक्त रहता है ।

9. शराब भी क्रोनिक हेपेटाइटिस एवं सिरोसिस का कारण है। अतः शराब का प्रयोग इस रोग के लक्षण में जानलेवा है।

10. मलेरिया या गंदगी युक्त पदार्थों के साथ वायरस हेपेटाइटिस ए और इ शरीर में पहुंचने, विशेषकर पीने के पानी के साथ जाने से यह बिमारी फैलती है। हमारे देश में फैलने वाली इस महामारी का कारण हेपेटाइटिस ई है। अतः स्वच्छ पेय व खान पान का विशेष ध्यान रखें ।


11. हेपेटाइटिस बी, सी एवं डी मुख्य रूप से संक्रमित सुइयों के प्रयोग दुषित रक्त एवं खटमल एवं मच्छर भी इन विभिन्न प्रकार के स्त्रावों के साथ शरीर में प्रवेश देने का कार्य करते हैं इसलिए हेपेटाइटिस बी एवं सी से मरने वालों की संख्या एड्स से मरने वालों की संख्या से अधिक रहती है ।


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12 ऐसे भारतीय इंसान जिन पर हमें गर्व हैं। इनके वजह से हमें गर्व है हम भारतीय हैं।


12 ऐसे भारतीय इंसान जिन पर हमें गर्व 




12 ऐसे भारतीय इंसान जिन पर हमें गर्व 


वे हमारे परदेसी बंधु हैं। यह सच है कि उनमें से कुछ के पूर्वज मजदूरी करने दूसरे देशों में गये थे। पर आज दुनिया के कोने-कोने में फैले भारतीय गिरमिटिया नहीं है। अपनी मेहनत, लगन और इच्छा शक्ति के बूते उन्होंने दुनिया को रास्ता दिखाया है। चिकित्सा, तकनीक, सॉफ्टवेयर, अंतरिक्ष विज्ञान, अर्थशास्त्र, मनोरंजन, उद्योग-व्यापार, साहित्य, संगीत और शासन सत्ता तक कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहाँ वे पहले कतार में न हों । वे वतन से मुँह मोड़ गए हैं, ऐसा कहना भी ठीक न होगा, आखिर वे दुनिया के सामने भारत की स्वर्णिम तस्वीर पेश करते हैं। वे भी हमारे एवं आपकी तरह इस देश के लाड़ले बेटे हैं, जो 'भारतीय विश्व की परिकल्पना को साकार करने में लगे हुए हैं।




विजय सिंह



भारत आना एक तरह से घर वापसी जैसा सुकून देता है। सन् 2002 में बाईस फरवरी को चालीस साल के होने जा रहे गोल्फर विजय सिंह पैदा तो फिजी में हुए, पर वे अपने को उतना ही भारतीय भी मानते हैं।

   2002 में सातवीं रैंकिंग पर रहे विजय ने पेशेवर गोल्फर के तौर पर अपना कैरियर 1982 में शुरु किया। 1993 में पीजीए टूर में शामिल होने के बाद वे फ्लोरिड़ा (अमरीका) में रह रहे हैं। अपने 11 साल के गोल्फ कैरियर में उन्होंने दो बड़े खिताब जीते हैं। 1998 में यूएसपीजीए और 2000 में ऑगस्टा मास्टर्स, मई 2001 में उन्हें यूरोपियन टूर का मानद आजीवन सदस्य भी बनाया गया।

   पश्चिम में नस्लवाद के मसले पर उनका कहना है कि खेल के दौरान उन्हें कभी इसका शिकार नहीं होना पड़ा। हालांकि वे मानते हैं कि लोग उन्हें थोड़ा अलग नजर से जरूर देखते हैं, जैसे कह रहे हों, 'इसका यहाँ क्या काम है।"




कल्पना चावला


41 साल की कल्पना जब भी आसमान में होती है, भारतीयों की खुशी भी सातवें आसमान पर होती है। कल्पना 16 जनवरी 2003 को अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा पर रवाना हुई। करनाल में जन्मी कल्पना ने 1982 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। 1984 में टेक्सास में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर किया। 1988 में कोलरैडो विश्वविद्यालय से इसी विषय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 19 नवम्बर, 1997 को उन्हें पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। जब वे छह अन्य खगोलविदों के साथ नासा के एसटीएस-87 मिशन पर अंतरिक्ष में गई थी और वह नासा के ही एसटीएस-107 अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी हुई थी ।

     कल्पना मानती थी कि उन्हें एयरोनॉटिक्स को कैरियर के रूप में अपनाने की प्रेरणा जे.आर.डी. टाटा से मिली। साहस और संकल्प की प्रतिमूर्ति कल्पना इस बात की मिसाल थी कि अपनी मेहनत और लगन के बूते भारतीय महिलाओं में हर ऊँचाई को छू लेने की काबिलियत है। आज कल्पना चावला हमारे बीच में नहीं है ।





उज्जल दोसांझ



उज्जल दोसांझ ने कनाड़ा में वह राजनीतिक मुकाम हासिल किया है, जहाँ कम ही भारतीय पहुँच पाते हैं। वे ब्रिटिश कोलम्बिया के प्रधानमंत्री रहे हैं।

   1947 में जालंधर के दोसांझ कलां गाँव में पैदा हुए उज्जल 17 वर्ष की उम्र में भारत से ब्रिटेन गये। 1968 में वे वेंकुवर चले गए। 1977 में वहाँ उन्होंने वकील के रूप में अपना पंजीकरण कराया। उज्जल ने कनाड़ा में रंगभेद के खिलाफ झण्डा बुलंद किया। 1991 में वे पहली बार ब्रिटिश कोलंबिया की विधानसभा के सदस्य चुने गए। कनाड़ा में सिख हितों के लिए उन्होंने संघर्ष किया, पर उन्होंने सिख अलगाववादियों की अलग गृह राज्य की माँग का जमकर विरोध किया । भारत विभाजन की माँग करने वाली ताकतों का विरोध करने के चलते उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। अस्सी टांके लगने के बाद वे नई जिंदगी पा सके । लेकिन उसके बाद भी वे उसी लीक पर कायम हैं।



फातिका मीर



महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्ता के खिलाफ सत्य के संघर्ष की शुरुआत की थी। फातिमा मीर उस देश में गाँधी की आवाज है। बहातर साल की फातिमा मीर दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की तीसरी पीढ़ी से ताल्लुक रखती हैं। वे वर्तमान में डरबन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लैक रिसर्च की निदेशक है। उन्होंने नेल्सन की जीवनी 'हायर देन होप' लिखी है। 1952 में दक्षिण अफ्रीका के प्रसिद्ध नाटाल सत्याग्रह में उनकी अहम भूमिका रही थी। दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता संघर्ष और रंगभेद विरोधी मुहिम में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद उनका ध्यान अन्य गतिविधियों की ओर भी गया है। आजकल वे 'ताज' महल-इन इंटर्नल लव स्टोरी' नामक फिल्म से सह लेखिका के तौर पर जुड़ी है।




सबीर भाटिया 



सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारतीय युवा प्रतिभाओं का लोहा सारी दुनिया मानती है । सिलिकॉन वैली की लगभग सभी बड़ी कम्पनियों में भारतीय ऊँचे ओहदों पर हैं, पर आम भारतीय के लिए सबीर भाटिया ही सिलिकॉन वैली का पर्याय हैं । चंडीगढ़ में पैदा हुए सबीर भाटिया बैंगलौर में बड़े हुए। वे 1988 में अमरीका जा बसे। उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कम्पनी से टक्कर लेते हुए हॉटमेल डॉट कॉम को सफल बनाया और बाद में चार सौ मिलियन डॉलर में उसे माइक्रोसॉफ्ट को ही बेचकर भारी मुनाफा कमाया। वे 'चाइल्ड रिलीफ एण्ड यू' जैसी सामाजिक संस्थाओं से भी सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। अप्रवासी भारतीय से जुड़े मुद्दों पर वे अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं । भाटिया की गिनती अमरीका के योग्यतम कुँवारों में होती है। उनका सपना है, 'भारत की व्यावसायिक और वौद्धिक प्रतिभा का डंका सारी दुनिया में बजे, जिससे देश की हालत में आमूल सुधार हो।'




झुंपा लाहिड़ी


न्यूयार्क में रहने वाली झुंपा लाहिड़ी 1967 में लंदन में पैदा हुई और रोड आइलैंड में पली-बढ़ी, पर उनके पिता की भारतीय जड़ें उनमें और भी गहरे तक समाई हुई है। झुंपा लेखकों की उस पौध से ताल्लुक रखती हैं, जिसने यह साबित किया है कि 'भाषा नस्ल की मोहताज नहीं होती।' उनकी लिखी 'इंटरप्रेटर ऑफ मेलोडिज' ने वर्ष 2000 में पुलित्जर पुरस्कार हासिल किया। इस पुस्तक की शीर्षक कहानी को अमरीका की सर्वश्रेष्ठ कहानियों की सूची में भी जगह मिली है । झुंपा भारत के साथ एक विशिष्ट अपनापन महसूस करती हैं। शायद यही अपनापन उन्हें बार बार कोलकाता खींच लाता है। जहाँ कभी उनके माता-पिता रहा करते थे। 'द न्यूयॉर्कर' ने जब अमरीका के बीस सर्वश्रेष्ठ युवा कथा लेखकों की सूची तैयार की, तो उसमें झुंपा को भी जगह मिली । अमरीकी नये कथा साहित्य में झुंपा का कितना प्रभाव है, इसका पता कम उम्र में हासिल की गई उनकी उपलब्धियों को देखकर ही चलता है ।





कृष्ण भरत



हाल में अमरीका में सी बी एस टीवी चैनल ने अपने एक कार्यक्रम के दौरान आई आई टी को एम आई टी, हार्वर्ड और प्रिंसटन जैसे संस्थानों से भी ऊँचा स्थान दिया है। यह बहुत कुछ कृष्ण भरत जैसे छात्रों की ही बदौलत है। कृष्ण भरत आई आई टी चैन्नई के छात्र रहे हैं । वे आजकल इंटरनेट के सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन गूगल में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने 1996 में जॉर्जिया विश्वविद्यालय से पीएचडी भी की है । इसके अलावा वे वर्ल्ड वाइड वेब कांफ्रेंस के रिव्यूअर भी रह चुके हैं।




स्वराज पॉल


व्यापारी जगत में सफलता के लिए निम्न तीन बातें जरूरी है मानवीय मूल्यों और विषयों का ज्ञान, अद्वितीय की खोज और सामूहिक प्रयास' यह मानना है जालंधर में जन्मे 71 वर्षीय ब्रिटिश उद्योगपति स्वराज पॉल का 'लाई पॉल ऑफ मरिलबोन' की उपाधि से सम्मानित स्वराज पॉल 1956 में अपनी छोटी बहन अम्विका का इलाज कराने इंग्लैण्ड गए। 1968 में बेटी का निधन हो गया, तबसे वे वहीं बस गए। पॉल ने वहाँ कपारो समूह की शुरुआत की। उनकी सूझबूझ और व्यापार कौशल से आज कपारो समूह का कारोबार 2.8 करोड़ पाउण्ड का है। 1997 में उन्हें हाउस ऑफ लार्ड्स का सदस्य बनाया गया। दुनिया भर में चोटी की राजनीतिक और व्यापारिक शख्सियों से उनके नजदीकी रिश्ते हैं। इन्हीं सब बातों के चलते वे ब्रिटेन में बसे भारतीयों की सबसे मुखर आवाज तो है ही, यूरोप में भारतीय हितों के प्रखर पैरोकार भी हैं ।




जुबीन मेहता


जुबीन मेहता ऑर्केस्ट्रा संगीत की दुनिया में सबसे मशहूर लोगों में हैं। 29 अप्रैल, 1936 को मुम्बई (तब बॉम्बे) में पैदा हुए जुबीन पारसी है। उनके पूर्वज करीब एक हजार साल पहले भारत में आकर बसे थे ।

      1963 में ही उनके संगीत गुरु स्वरोस्की ने भविष्यवाणी कर दी थी कि वे विश्व संगीत के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराऐंगे। 1994 में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कोष के लिए मेहता ने सराजेवो सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा के साथ कार्यक्रम किया। जिसका 16 देशों में सीधा प्रसारण किया गया। नवम्बर, 1994 में उन्होंने इजराइल फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा को भारत लाकर वह काम कर दिखाया । जो पिछले करीब तीन दशकों से नहीं हो सका था। मुम्बई और दिल्ली में कार्यक्रम आयोजित कर उन्होंने भारत और इजराइल के बीच जारी राजनीतिक ठहराव को खत्म करने में मदद की।




बिक्रम चौधरी


योग के आधुनिक संस्करण 'योगा' की विश्व भर में पताका फहराने वालों में बिक्रम चौधरी सबसे आगे हैं। उन्होंने 'बिक्रम योग' ईजाद कर उपचारी योग के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किया है 105 डिग्री फॉरेनहाइट तक गर्म कमरे में किया जाने वाला यह योग शरीर में भीतर से बाहर की ओर काम करता है। मधुमेह, गठिया, हृदय रोग और कमर दर्द जैसी बीमारियों को बिक्रम योग की मदद से चमत्कारी स्तर तक कम किया जा सकता है

    1946 में कोलकाता (तब कलकत्ता) में पैदा हुए बिक्रम ने योग शिक्षा विष्णु घोष से पाई उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय योग प्रतियोगिता भी जीती, तब वे केवल तेरह साल के थे

   उनके घुटने में लगी लाइलाज चोट को गुरु विष्णु घोष ने ठीक कर दिया। जिसके बाद गुरु के आदेश से उन्होंने देशभर में योग स्कूल स्थापित किए। आज 'योग कॉलेज ऑफ इण्डिया' की शाखाएँ दुनिया भर में फैली हुई हैं।




एस. आर. नाथन


दक्षिणी पूर्वी देशों में भारतीयों ने अच्छी खासी सामाजिक और राजनीतिक हैसियत पा ली है । यह बात साफ तौर पर तब सामने आई, जब 1999 में एस. आर. नाथन सिंगापुर गणराज्य के राष्ट्रपति चुने गए । नाथन ने अपने कैरियर की शुरुआत सिंगापुर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में की । इससे पूर्व उन्होंने अमेरिका में सिंगापुर के राजदूत के तौर पर भी कार्य किया। उन्होंने भारत और सिंगापुर के बीच व्यापार सहयोग बढ़ाने की दिशा में भी काम किया। वे सिंगापुर इंडियन डेवलपमेंट एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य भी हैं। 3 जुलाई, 1924 को सिंगापुर में ही पैदा हुए नाथन ने मलाया विश्वविद्यालय से 1954 में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने वहाँ हिन्दू एन्डोमेंट बोर्ड के प्रमुख तौर पर भी कार्य किया।




अमर बोस


अमर बोस जब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी में पढ़ाई कर रहे थे, तब उनकी रुचि ध्वनि विज्ञान में बढ़ी और उन्होंने हॉल में सुनाई पड़ने वाली आवाज को अपने स्पीकर के जरिए पैदा करने की कोशिश की उन्होंने अपने बनाए स्पीकर सिस्टम में पहली बार दीवार और छत से परावर्तित होने वाली आवाज का इस्तेमाल करने की कोशिश की। 1930 में फिलाडेल्फिया में पैदा हुए बोस बंगाली पिता और अमेरिकी माँ की संतान हैं। अपनी युवावस्था के कुछ दिनों में उन्होंने धन कमाने के लिए खिलौना रेलगाड़ियों और ट्रांजिस्टर आदि की मरम्मत भी की । 1964 में उन्होंने बोस कॉरपोरेशन की स्थापना की। जिसके बनाए कार स्टीरियो सिस्टम, वेव रेडियो सारी दुनिया में इस्तेमाल किए जाते हैं।


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दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World


दुनिया के 7 आविष्कार










रडार का आविष्कार


रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं ।

   रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई ।

   रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है।

     आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया।

    भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।

दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


 प्रत्येक रडार में मुख्य रूप से चार भाग होते हैं

1.    ट्रांसमीटर

2.   एरियल

3.   रिसीवर तथा

4.   इन्डीकेटर 

'रडार' यंत्र की खासियत है कि इसे किसी वाहन पर फिट कर दिया जाता है। इसे कार्य करने के लिए तीस मिनट का समय लगता है, और 'रडार' विभिन्न प्रकार की सूचनाएं देना प्रारंभ कर देता है |




दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


टेलीफोन का आविष्कार


आज की यांत्रिक जिंदगी में टेलीफोन का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। कुछ ही मिनटों और सेकिण्डों में कहीं भी बातचीत की जा सकती है। आप देश-विदेश में टेलीफोन करके तुरंत ही हालचाल प्राप्त कर सकते हैं | 

   ग्राह्मबेल ने जब देखा कि बोलते समय कुछ कम्पन और थरथराहट उत्पन्न होती है तो उनके मन में एक विचार आया क्यों न इस प्रकार की बातचीत की थरथराहट को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जाए।

     ग्राह्यबेल ने अपने मित्र वाटसन को अपना विचार बतलाया। वाटसन ने एक लंबा तार लेकर एक सिरे पर एक पतली झिल्ली बांधी और ग्राह्मबेल तथा वाटसन, एक-एक छोर पर बैठ गए। बेल ने झिल्ली के सामने सीटी बजाई तो वाटसन को आवाज सुनाई दी। वाटसन और ग्राह्मबेल एकदम से प्रसन्न हुए। बाद में प्रयोग करने के विचार उन्होंने झिल्ली की तरफ वाला भाग हल्के तेजाब में डुबोया। दूसरा सिरा वाटसन ने अपने कान में लगाया। इधर बेल ने बोला, 'वाटसन इधर आओ।' यह आवाज वाटसन को स्पष्ट सुनाई दी। इस प्रकार टेलीफोन के आविष्कार की बात सामने आई। ग्राह्यबेल ने बाद में बॉक्स आदि बनाकर लोगों को टेलीफोन पर आवाजें सुनवाईं।

   वैसे देखा जाए तो टेलीफोन के आविष्कार की बात सर्वप्रथम जर्मन के एक वैज्ञानिक 'फिलिप रोस' के मन में पैदा हुई थी। उन्होंने लकड़ी के कान जैसी आकृतियां बनाईं, उन्हें बिजली के तारों और बैटरी से जोड़ा इस प्रकार एक सिरे से दूसरे सिरे पर रखे लकड़ी के कान में आवाजें सुनाई दीं। लेकिन 'फिलिप रोस' के आविष्कार को मान्यता नहीं मिली।

   1876 में अमेरिका के फिलाडेलफिया नामक स्थान पर ग्राह्मबेल ने सार्वजनिक रूप से अपने टेलीफोन का प्रदर्शन किया था। बाद में अनेक वैज्ञानिकों ने आवश्यकतानुसार उसमें सुधार किए।

    टेलीफोन का प्रयोग निरंतर बढ़ता गया। 1915 में न्यूयार्क और सन्फ्रांसिसको के बीच (लगभग छह हजार चार सौ किलोमीटर दूरी) टेलीफोन के तार लगाए गए। न्यूयार्क में बैठे हुए ग्राह्मबेल ने फ्रांसिसको में बैठे हुए वाटसन से बातचीत की।

   टेलीफोन की कार्यप्रणाली इस बात पर निर्भर है—इसमें ध्वनि को विद्युत-संवेगों में बदला जाता है, बाद में रिसीवर इन संवेगों को ध्वनि में बदल देता है।

   आजकल तो टेलीफोन में स्वचालित प्रणाली हो गई है, पहले टेलीफोन एक्सचेंज से डॉयल करते वक्त नम्बर लेना पड़ता था। लंबी दूरी पर बातचीत करने के लिए 'केबल-प्रणाली' भी काम आ रही है। केबल-सिस्टम के कारण ही एक साथ सैंकड़ों कॉल हो पाते हैं।

     माइक्रोवेव-प्रणाली और संचार उपग्रहों की भी सहायता टेलीफोन में ली जा रही है। संचार-उपग्रह के भी अच्छे प्रभाव निकले हैं, इनकी मदद से बातचीत करते समय लाइनें सुगमता से जल्दी मिल जाती हैं। आजकल तो तमाम प्रकार के पोर्टेबल तथा विभिन्न आकृतियों के टेलीफोन बनाए जा रहे हैं । वैज्ञानिक इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि ऐसे 'वीडियो टेलीफोन' बनाए जाएं, जिनमें बोलने वाले की छवि (आकृति) भी दिखाई दें। अभी केवल जापान में ऐसे टेलीफोन सेटों का निर्माण हुआ है। कुछ देशों ने तो घड़ी में भी टेलीफोन करने की सुविधा बना ली है । निरंतर टेलीफोन के क्षेत्र में क्रांति आ रही है ।




दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


थर्मामीटर का आविष्कार

 थर्मामीटर का उपयोग शरीर का तापक्रम, कमरे का तापमान तथा वायु का तापमान ज्ञात करने के लिए। किया जाता है। अलग-अलग प्रकार के थर्मामीटर अलग-अलग कार्य करते हैं। तापमान भले डिग्रियों में मापा जाता है लेकिन सभी प्रकार के थर्मामीटर की डिग्रियों का पैमाना एक-सा नहीं होता।

   थर्मामीटर का आविष्कार इटली के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलीलियो ने 1593 में किया था। उन्होंने एक ऐसे थर्मामीटर को बनाया, जिससे उस समय केवल वायु के तापमान को ज्ञात कर सकते थे।

जब गैलीलियो ने थर्मामीटर तैयार किया तो अनेक वैज्ञानिकों ने भी इस दिशा में अपने प्रयास शुरू किए।

    गैलीलियों ने सबसे पहले जो यंत्र बनाया, उसमें पारे की जगह पानी भरा था। यह एक शीशे की नली ही थी, जिसमें पानी को आग से गर्म करके तापमान का पता लगाते थे। इस यंत्र को थर्मामीटर नाम इसलिए मिला कि गर्मी को मापने वाले यंत्र को ग्रीकभाषा में 'थर्मामीटर' कहा जाता था। गैलीलियो के बाद अनेक लोगों ने नली में शराब, एल्कोहल और दूसरे द्रव भरकर थर्मामीटर तैयार किया।

उस जमाने में थर्मामीटर से केवल यह ज्ञात किया जाता था कि कौन-सी वस्तु कितनी गर्म है और कौन-सी ठंडी है।

     मौसम और शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए अनेक वैज्ञानिकों ने थर्मामीटर बनाए। इन्हीं वैज्ञानिकों में से एक वैज्ञानिक था - जर्मनी का प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी ग्रैब्रिल फारेनहाइट फारेनहाइट ने शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए थर्मामीटर तैयार किया। यह थर्मामीटर 'फारेनहाइट थर्मामीटर' कहलाया। शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए थर्मामीटर में पारे का उपयोग किया गया। 

   पारे का स्वभाव है कि यह गर्मी मिलते ही फैलता है और बाद में फौरन सिकुड़ जाता है। इस प्रकार के थर्मामीटर से 300 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान ज्ञात किया जा सकता है ।

   शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए थर्मामीटर को जीभ के नीचे या बगल में दबाया जाता है। गर्मी पाकर थर्मामीटर का पारा ऊपर की ओर बढ़कर रुक जाता है। बाद में कुछ समय बाद उसे निशानों के आधार पर पढ़ा जा सकता है।

   थर्मामीटर की नली में पारे को 97° तक ही रखा जाता है क्योंकि एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर का साधारण ताप 97° ही होता है । जब 97° से ऊपर है तापक्रम बढ़ जाता है, तो मालूम होता है कि मनुष्य को बुखार हो आया है। 97° के ऊपर जो निशान बने होते हैं, वे डिग्रियों में ही होते हैं ।

फारेनहाइट थर्मामीटर में कुछ वैज्ञानिक स्वस्थ मनुष्य का तापक्रम 98.4° भी मानते हैं ।

    अनेक दूसरे वैज्ञानिकों ने कुछ विशेष धातुओं के थर्मामीटर भी बनाए। इनमें तारों व कुंडलियों का उपयोग किया गया। तार की कुंडली पर निशान बनाए गए, जैसे ही तापमान बढ़ता है वैसे ही कुंडली कस जाती है और जैसे ही तापक्रम कम होता है, वैसे ही कुंडली ढीली पड़ जाती है। इस प्रकार तापक्रम माप लिया जाता है ।

   फारेनहाइट के अलावा एक थर्मामीटर सेंटीग्रेड थर्मामीटर भी बनाया गया । इस थर्मामीटर के अनुसार एक स्वस्थ मनुष्य का तापक्रम 97° सेंटीग्रेड होता है । 

   आजकल तो कुछ ऐसे थर्मामीटर भी बनाए गए हैं, जिनमें ग्राफ या नक्शा-सा तैयार हो जाता है । फारेनहाइट के बाद ऐण्डर्स कैल्सियस और अन्य वैज्ञानिकों ने भी थर्मामीटर में अनेक सुधार किए । 

   आजकल औद्योगिक क्षेत्रों में तथा अनेक कल-कारखानों में तापक्रम पर नियंत्रण रखने के लिए विभिन्न प्रकार के थर्मामीटर का उपयोग किया जाता है।




दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


चुम्बक की कहानी


   सबसे पहले एशिया माइनर के 'मैग्नीशिया' नामक स्थान पर एक ऐसी अनोखी धातु का पता लगा जो लोहे की वस्तुओं को अपनी तरफ खींच लेती थी। यह धातु काले रंग की थी। मैग्नीशिया नामक जगह पर मिलने के कारण इसका नाम 'मैग्नेट' चुम्बक रख दिया ।

   कहा जाता है कि दो हजार चार सौ वर्ष पूर्व भी इस प्रकार की धातु को एक डोरी में बांध कर रखा जाता था। यह चुम्बक उत्तर और दक्षिण दिशा में ही ठहरता था इसलिए उस जमाने में मल्लाह लोग जहाज और बड़ी-बड़ी नावों में इस धातु के टुकड़े को डोरी में बांधकर लटकाते थे। इस प्रकार उन्हें दिशा ज्ञान हो जाता था। आज भी चुम्बक का प्रयोग 'दिगसूचक यंत्र बनाने में होता है। 

  प्राकृतिक चुम्बक तो पृथ्वी में मिलते ही थे, लेकिन आजकल तो अनेक प्रकार के कृत्रिम चुम्बक बनाए जा रहे हैं। इन कृत्रिम चुम्बकों का उपयोग विभिन्न प्रकार के यंत्रों और घड़ियों में भी किया जाता है। 


  उपयोग के अनुसार कृत्रिम चुम्बकों का निर्माण किया जाता है। आवश्यकतानुसार उनकी तीव्रता एवं प्रबलता का ध्यान रखा जाता है।


'कृत्रिम-चुम्बक' प्रायः चार प्रकार की आकृतियों में पाए जाते हैं

1. नाल चुम्बक

2. सुई चुम्बक

3. गोल ध्रुवों के चुम्बक तथा

4. छड़ चुम्बक 


   इन आकृतियों के अतिरिक्त भी विभिन्न प्रकार के चुम्बकों का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक चुम्बक में एक ऐसी जगह जरूर होती है, जहां सबसे ज्यादा 'चुम्बकत्व' होता है, इसे 'चुम्बक का ध्रुव' कहते हैं।






दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।

ग्रामोफोन का आविष्कार


ग्रामोफोन के आविष्कार से चल चित्र जगत् में भी अनोखी क्रांति आई । इसे बोलचाल की भाषा में कुछ लोग 'लाउडस्पीकर' भी बोलते हैं। 

   यूनानी भाषा के शब्द ग्रामोफोन का पूरा अर्थ है- ग्रामो = अक्षर तथा फोन का अर्थ है = 'ध्वनि’ । इस प्रकार ग्रामोफोन को ध्वनि उत्पन्न करने वाला एक यंत्र माना जाता है। 

   सर्वप्रथम लियन स्कॉट नामक वैज्ञानिक ने 1857 में एक ऐसे यंत्र का आविष्कार किया जिसके द्वारा ध्वनि का अभिलेखन किया जा सकता था । यह यंत्र 'फोनाटोग्राफ' कहा गया।

इस अभिलेखन वाली ध्वनि को पुनः उत्पादन करने के लिए टी. ए. एडिसन द्वारा 1876 में एक यंत्र बनाया, जिसे 'फोनोग्राफ' नाम मिला ।

    अमेरिका के वैज्ञानिक टामस अल्वा एडिसन के मन में सर्वप्रथम यह विचार आया कि एक ऐसा यंत्र निर्मित किया जाए, जिससे किसी प्लास्टिक या धातु की प्लेट पर अंकित ध्वनि तरंगों को पुनः उसी रूप में सुना जा सके। उनके विचार के बाद वे ऐसी खोजबीन में एकदम से जुट गए। वे कई वर्षों तक प्रयास करते रहे। उन्होंने एक सिलेंडर पर टीन की पत्ती लगाकर घुमाना शुरू किया। इस पत्ती को एक सुई छू रही थी । यह ग्रामोफोन रिकार्ड का प्रथम रूप था ।

  रिकार्ड पर टेढ़ी-मेढ़ी जो नालियां भी बनी होती हैं वे एक प्रकार के कम्पन से बनती हैं। भारी आवाज में नालियों में टेढ़ापन अधिक होता है, जबकि हल्की आवाज में कम। 1898 में जर्मनी के एक वैज्ञानिक एमिल बर्लिनर ने ग्रामोफोन कम्पनी बनाई जहां ग्रामोफोन रिकार्ड बनने लगे।

    आजकल तो एक विशेष गोल डिस्क पर आवाज अंकित कर ली जाती है। इस गोल डिस्क को एक विशेष गति पर चलाया जाता है। गोल डिस्क को छूती हुई सुई लगी रहती है। डिस्क गोल घूमती है। उस पर स्पर्श करती हुई सुई रगड़ती जाती है। इस प्रकार निश्चित आकृति पर रिकार्ड की गई आवाज निकलती है । आजकल तो माइक और एम्प्लीफायर के बन जाने से ग्रामोफोन में भी परिवर्तन आया है। अब पिकअप प्रणाली शुरू हुई है। बड़े-बड़े रिकार्डप्लेयर और रेडियोग्राम तथा स्टीरियो रिकार्ड प्लेयर बनाए गए हैं। पूर्व में एक रिकार्ड में केवल एक गाना भरा जाता था तथा प्रत्येक बार इस्पात की सुई को बदला जाता था। लेकिन अब ऐसे रिकार्ड बनाए जा रहे हैं, जिनमें एक साथ कई गाने रिकार्ड किए जाते हैं तथा बार-बार सुई नहीं बदली जाती।





दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।

टाइपराइटर का आविष्कार


टाइपराइटर एक ऐसा यंत्र है, जिसकी सहायता से मिनटों में स्वच्छ, साफ और व्यवस्थित अक्षरों को टाइप किया जा सकता है। आजकल सरकारी व गैर-सरकारी दफ्तरों में अधिकांश काम टाइपराइटर से ही किया जाता है।

   सर्वप्रथम जो टाइपराइटर (टंकण मशीन) तैयार किया गया, उसका आविष्कार 1814 में हेनरी गिल ने किया। हेनरी गिल इंग्लैंड के निवासी थे। उनकी देखा-देखी अमेरिका के एक इंजीनियर ने 'बर्ट टाइपोग्राफर' नामक मशीन बनाई। 1836 में क्रिस्टोफर शोल्स ने टाइपराइटर का व्यवहारिक रूप तैयार किया। इस टाइपराइटर में शब्दों और अक्षरों के साथ अंक भी टाइप हो जाते थे।

     अमेरिका की रैमिंग्टन कम्पनी ने टाइपराइटर के अनेक मॉडल तैयार किए। इस कम्पनी ने एक विशेष टाइपराइटर 1874 में बनाया। इसमें अनेक कमियों को दूर किया गया था। आज धीरे-धीरे अनेक प्रयासों के बाद विश्व की अनेक भाषाओं में टाइपराइटर बन चुके हैं । देवनागरी लिपि का टाइपराइटर रैमिंग्टन कम्पनी ने सबसे पहले तैयार किया था ।

   भारतवर्ष में आजकल चार प्रमुख कम्पनियां टाइपराइटर का निर्माण कर रही हैं-रैमिंगटन, गोदरेज, हाल्डा और फैसिट । इन प्रमुख कंपनियों के माध्यम से मानक टंकण यंत्र, पोर्टेबिल टंकण यंत्र, वहनीय टंकण यंत्र, ध्वनि रहित टंकण यंत्र, वैरीटाइपर, विद्युत, टंकण यंत्र, इलैक्ट्रानिक टंकण यंत्र विकसित किए गए हैं।

     मानक हस्तचालित टंकण यंत्र हाथ से काम करता है। इससे बहुत तेजी से काम करना संभव नहीं क्योंकि अंगुलियों से ही सारा काम करना पड़ता है। विद्युत टाइपराइटर में हर समय बिजली की जरूरत होती है। इसमें छपाई सुंदर और आकर्षक होती है काम भी जल्दी संपन्न होता है। 

    इलैक्ट्रोनिक टाइपराइटर, एक ऐसा टाइपराइटर है । इसमें अनेक प्रकार की व्यवस्थाएं होती हैं। इसकी मदद से एक साथ मनचाही प्रतियां निकाली जा सकती हैं। एक ही मशीन पर हिन्दी-अंग्रेजी तथा अन्य दूसरी भाषाएं टाइप करने की भी व्यवस्था होती है । इलैक्ट्रोनिक टाइपराइटर में एक विशेष प्रकार का सफेद रिबन होता है, जिस पर टाइप किए गए अक्षर मिटाकर फौरन दूसरे अक्षर टाइप किए जा सकते हैं। इसमें मैमोरी सैक्शन होता है, जिसमें कोई भी मैटर टाइप करके छोड़ा जा सकता है। बाद में जरूरत पड़ने पर मैटर टाइप किया जा सकता है ।





दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


प्लास्टिक की कहानी

आज के युग में प्लास्टिक का काफी महत्व है, प्रत्येक क्षेत्र में प्लास्टिक का जमकर उपयोग किया जा रहा है। बटन से लेकर बड़े-बड़े यंत्रों में प्लास्टिक इस्तेमाल किया जाता है। प्लास्टिक का साधारण भाषा में अर्थ होता है, 'जो बहुत आसानी से मोड़ा जा सके।' प्लास्टिक के प्रचलन से जहां एक तरफ सुविधा हुई है, वहीं अन्य वस्तुओं के बढ़ते दामों को कम करने में सहायता मिली है।

    प्लास्टिक का सर्वप्रथम आविष्कार उन्नीसवीं शताब्दी के सातवें दशक में अमरीका में हुआ था। आविष्कारक का नाम था-जानवेसली हाडपेर। प्लास्टिक को पूर्व में 'सैल्यूलाइड' के नाम से पहचानते थे। बाद में इसका नाम 'प्लास्टिक' पड़ा। प्लास्टिक की एक विशेषता है कि इसे बार-बार प्रयोग किया जा सकता है। लचीलेपन और मुलायम होने के कारण इसका अनेकों बार उपयोग हो जाता है। घर के जूते हों, चप्पल हों या खिलौने अथवा दीवारों की खूंटी, हरजगह प्लास्टिक का उपयोग दिखलाई पड़ता है। प्लास्टिक को कई तरह के रंग मिलाकर उसे और अधिक आकर्षक व सुंदर बनाया जा सकता है।

   कुछ इस तरह की प्लास्टिक भी होती है, जो तुरंत ही आग नहीं पकड़ती। धातु की तुलना में प्लास्टिक हल्की भी होती है तथा इस पर पानी एवं हवा का प्रभाव नहीं पड़ता। प्लास्टिक में जंग भी नहीं लगती। प्लास्टिक से निर्मित कुछ वस्तुएं बहुत ही लचीली व कुछ बहुत कठोर होती हैं जैसे-चश्मे के फ्रेम, कंघा, ब्रुश, टेलीफोन सेट आदि। प्लास्टिक के आविष्कार से सभी को लाभ मिला है।

   फिनोलिन और अमीनो ऐसे प्लास्टिक हैं जिन्हें एक बार किसी सांचे में ढाल लिया जाता है। इन्हें बार-बार पिघलाना संभव नहीं है। प्लास्टिक से मोटी-मोटी चादरें भी बनाई जाती हैं, रेल के डिब्बों में या किसी बड़ी मशीन में प्लास्टिक की इन चादरों और छड़ों का उपयोग किया जाता है। आजकल तो बड़े-बड़े यंत्रों में भी प्लास्टिक लगाया जाता है।

    सेल्यूलोसिक प्लास्टिक बड़ी सरलता से आग में पिघल जाती है। इसी गुण के आधार पर इससे प्लास्टिक का छोटा-छोटा सामान बनाया जाता है । खिलौने, मग, फाउन्टेनपेन आदि इसी प्रकार तैयार होते हैं। आजकल तो प्लास्टिक ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया है। नकली दांत और नकली आंखें तक प्लास्टिक से बनने लगी हैं। प्लास्टिक से ही एक विशेष तरह की वार्निश भी तैयार होने लगी है। चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले यंत्रों में भी प्लास्टिक का बोलबाला है।

     आज हमारे वैज्ञानिक निरंतर इस प्रयास में लगे हैं कि प्लास्टिक का अधिक से अधिक उपयोग हुए किया जा सके। गुब्बारे काफी ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं।


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