दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World


दुनिया के 7 आविष्कार










रडार का आविष्कार


रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं ।

   रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई ।

   रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है।

     आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया।

    भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।

दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


 प्रत्येक रडार में मुख्य रूप से चार भाग होते हैं

1.    ट्रांसमीटर

2.   एरियल

3.   रिसीवर तथा

4.   इन्डीकेटर 

'रडार' यंत्र की खासियत है कि इसे किसी वाहन पर फिट कर दिया जाता है। इसे कार्य करने के लिए तीस मिनट का समय लगता है, और 'रडार' विभिन्न प्रकार की सूचनाएं देना प्रारंभ कर देता है |




दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


टेलीफोन का आविष्कार


आज की यांत्रिक जिंदगी में टेलीफोन का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। कुछ ही मिनटों और सेकिण्डों में कहीं भी बातचीत की जा सकती है। आप देश-विदेश में टेलीफोन करके तुरंत ही हालचाल प्राप्त कर सकते हैं | 

   ग्राह्मबेल ने जब देखा कि बोलते समय कुछ कम्पन और थरथराहट उत्पन्न होती है तो उनके मन में एक विचार आया क्यों न इस प्रकार की बातचीत की थरथराहट को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जाए।

     ग्राह्यबेल ने अपने मित्र वाटसन को अपना विचार बतलाया। वाटसन ने एक लंबा तार लेकर एक सिरे पर एक पतली झिल्ली बांधी और ग्राह्मबेल तथा वाटसन, एक-एक छोर पर बैठ गए। बेल ने झिल्ली के सामने सीटी बजाई तो वाटसन को आवाज सुनाई दी। वाटसन और ग्राह्मबेल एकदम से प्रसन्न हुए। बाद में प्रयोग करने के विचार उन्होंने झिल्ली की तरफ वाला भाग हल्के तेजाब में डुबोया। दूसरा सिरा वाटसन ने अपने कान में लगाया। इधर बेल ने बोला, 'वाटसन इधर आओ।' यह आवाज वाटसन को स्पष्ट सुनाई दी। इस प्रकार टेलीफोन के आविष्कार की बात सामने आई। ग्राह्यबेल ने बाद में बॉक्स आदि बनाकर लोगों को टेलीफोन पर आवाजें सुनवाईं।

   वैसे देखा जाए तो टेलीफोन के आविष्कार की बात सर्वप्रथम जर्मन के एक वैज्ञानिक 'फिलिप रोस' के मन में पैदा हुई थी। उन्होंने लकड़ी के कान जैसी आकृतियां बनाईं, उन्हें बिजली के तारों और बैटरी से जोड़ा इस प्रकार एक सिरे से दूसरे सिरे पर रखे लकड़ी के कान में आवाजें सुनाई दीं। लेकिन 'फिलिप रोस' के आविष्कार को मान्यता नहीं मिली।

   1876 में अमेरिका के फिलाडेलफिया नामक स्थान पर ग्राह्मबेल ने सार्वजनिक रूप से अपने टेलीफोन का प्रदर्शन किया था। बाद में अनेक वैज्ञानिकों ने आवश्यकतानुसार उसमें सुधार किए।

    टेलीफोन का प्रयोग निरंतर बढ़ता गया। 1915 में न्यूयार्क और सन्फ्रांसिसको के बीच (लगभग छह हजार चार सौ किलोमीटर दूरी) टेलीफोन के तार लगाए गए। न्यूयार्क में बैठे हुए ग्राह्मबेल ने फ्रांसिसको में बैठे हुए वाटसन से बातचीत की।

   टेलीफोन की कार्यप्रणाली इस बात पर निर्भर है—इसमें ध्वनि को विद्युत-संवेगों में बदला जाता है, बाद में रिसीवर इन संवेगों को ध्वनि में बदल देता है।

   आजकल तो टेलीफोन में स्वचालित प्रणाली हो गई है, पहले टेलीफोन एक्सचेंज से डॉयल करते वक्त नम्बर लेना पड़ता था। लंबी दूरी पर बातचीत करने के लिए 'केबल-प्रणाली' भी काम आ रही है। केबल-सिस्टम के कारण ही एक साथ सैंकड़ों कॉल हो पाते हैं।

     माइक्रोवेव-प्रणाली और संचार उपग्रहों की भी सहायता टेलीफोन में ली जा रही है। संचार-उपग्रह के भी अच्छे प्रभाव निकले हैं, इनकी मदद से बातचीत करते समय लाइनें सुगमता से जल्दी मिल जाती हैं। आजकल तो तमाम प्रकार के पोर्टेबल तथा विभिन्न आकृतियों के टेलीफोन बनाए जा रहे हैं । वैज्ञानिक इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि ऐसे 'वीडियो टेलीफोन' बनाए जाएं, जिनमें बोलने वाले की छवि (आकृति) भी दिखाई दें। अभी केवल जापान में ऐसे टेलीफोन सेटों का निर्माण हुआ है। कुछ देशों ने तो घड़ी में भी टेलीफोन करने की सुविधा बना ली है । निरंतर टेलीफोन के क्षेत्र में क्रांति आ रही है ।




दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


थर्मामीटर का आविष्कार

 थर्मामीटर का उपयोग शरीर का तापक्रम, कमरे का तापमान तथा वायु का तापमान ज्ञात करने के लिए। किया जाता है। अलग-अलग प्रकार के थर्मामीटर अलग-अलग कार्य करते हैं। तापमान भले डिग्रियों में मापा जाता है लेकिन सभी प्रकार के थर्मामीटर की डिग्रियों का पैमाना एक-सा नहीं होता।

   थर्मामीटर का आविष्कार इटली के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलीलियो ने 1593 में किया था। उन्होंने एक ऐसे थर्मामीटर को बनाया, जिससे उस समय केवल वायु के तापमान को ज्ञात कर सकते थे।

जब गैलीलियो ने थर्मामीटर तैयार किया तो अनेक वैज्ञानिकों ने भी इस दिशा में अपने प्रयास शुरू किए।

    गैलीलियों ने सबसे पहले जो यंत्र बनाया, उसमें पारे की जगह पानी भरा था। यह एक शीशे की नली ही थी, जिसमें पानी को आग से गर्म करके तापमान का पता लगाते थे। इस यंत्र को थर्मामीटर नाम इसलिए मिला कि गर्मी को मापने वाले यंत्र को ग्रीकभाषा में 'थर्मामीटर' कहा जाता था। गैलीलियो के बाद अनेक लोगों ने नली में शराब, एल्कोहल और दूसरे द्रव भरकर थर्मामीटर तैयार किया।

उस जमाने में थर्मामीटर से केवल यह ज्ञात किया जाता था कि कौन-सी वस्तु कितनी गर्म है और कौन-सी ठंडी है।

     मौसम और शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए अनेक वैज्ञानिकों ने थर्मामीटर बनाए। इन्हीं वैज्ञानिकों में से एक वैज्ञानिक था - जर्मनी का प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी ग्रैब्रिल फारेनहाइट फारेनहाइट ने शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए थर्मामीटर तैयार किया। यह थर्मामीटर 'फारेनहाइट थर्मामीटर' कहलाया। शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए थर्मामीटर में पारे का उपयोग किया गया। 

   पारे का स्वभाव है कि यह गर्मी मिलते ही फैलता है और बाद में फौरन सिकुड़ जाता है। इस प्रकार के थर्मामीटर से 300 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान ज्ञात किया जा सकता है ।

   शरीर का तापक्रम ज्ञात करने के लिए थर्मामीटर को जीभ के नीचे या बगल में दबाया जाता है। गर्मी पाकर थर्मामीटर का पारा ऊपर की ओर बढ़कर रुक जाता है। बाद में कुछ समय बाद उसे निशानों के आधार पर पढ़ा जा सकता है।

   थर्मामीटर की नली में पारे को 97° तक ही रखा जाता है क्योंकि एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर का साधारण ताप 97° ही होता है । जब 97° से ऊपर है तापक्रम बढ़ जाता है, तो मालूम होता है कि मनुष्य को बुखार हो आया है। 97° के ऊपर जो निशान बने होते हैं, वे डिग्रियों में ही होते हैं ।

फारेनहाइट थर्मामीटर में कुछ वैज्ञानिक स्वस्थ मनुष्य का तापक्रम 98.4° भी मानते हैं ।

    अनेक दूसरे वैज्ञानिकों ने कुछ विशेष धातुओं के थर्मामीटर भी बनाए। इनमें तारों व कुंडलियों का उपयोग किया गया। तार की कुंडली पर निशान बनाए गए, जैसे ही तापमान बढ़ता है वैसे ही कुंडली कस जाती है और जैसे ही तापक्रम कम होता है, वैसे ही कुंडली ढीली पड़ जाती है। इस प्रकार तापक्रम माप लिया जाता है ।

   फारेनहाइट के अलावा एक थर्मामीटर सेंटीग्रेड थर्मामीटर भी बनाया गया । इस थर्मामीटर के अनुसार एक स्वस्थ मनुष्य का तापक्रम 97° सेंटीग्रेड होता है । 

   आजकल तो कुछ ऐसे थर्मामीटर भी बनाए गए हैं, जिनमें ग्राफ या नक्शा-सा तैयार हो जाता है । फारेनहाइट के बाद ऐण्डर्स कैल्सियस और अन्य वैज्ञानिकों ने भी थर्मामीटर में अनेक सुधार किए । 

   आजकल औद्योगिक क्षेत्रों में तथा अनेक कल-कारखानों में तापक्रम पर नियंत्रण रखने के लिए विभिन्न प्रकार के थर्मामीटर का उपयोग किया जाता है।




दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


चुम्बक की कहानी


   सबसे पहले एशिया माइनर के 'मैग्नीशिया' नामक स्थान पर एक ऐसी अनोखी धातु का पता लगा जो लोहे की वस्तुओं को अपनी तरफ खींच लेती थी। यह धातु काले रंग की थी। मैग्नीशिया नामक जगह पर मिलने के कारण इसका नाम 'मैग्नेट' चुम्बक रख दिया ।

   कहा जाता है कि दो हजार चार सौ वर्ष पूर्व भी इस प्रकार की धातु को एक डोरी में बांध कर रखा जाता था। यह चुम्बक उत्तर और दक्षिण दिशा में ही ठहरता था इसलिए उस जमाने में मल्लाह लोग जहाज और बड़ी-बड़ी नावों में इस धातु के टुकड़े को डोरी में बांधकर लटकाते थे। इस प्रकार उन्हें दिशा ज्ञान हो जाता था। आज भी चुम्बक का प्रयोग 'दिगसूचक यंत्र बनाने में होता है। 

  प्राकृतिक चुम्बक तो पृथ्वी में मिलते ही थे, लेकिन आजकल तो अनेक प्रकार के कृत्रिम चुम्बक बनाए जा रहे हैं। इन कृत्रिम चुम्बकों का उपयोग विभिन्न प्रकार के यंत्रों और घड़ियों में भी किया जाता है। 


  उपयोग के अनुसार कृत्रिम चुम्बकों का निर्माण किया जाता है। आवश्यकतानुसार उनकी तीव्रता एवं प्रबलता का ध्यान रखा जाता है।


'कृत्रिम-चुम्बक' प्रायः चार प्रकार की आकृतियों में पाए जाते हैं

1. नाल चुम्बक

2. सुई चुम्बक

3. गोल ध्रुवों के चुम्बक तथा

4. छड़ चुम्बक 


   इन आकृतियों के अतिरिक्त भी विभिन्न प्रकार के चुम्बकों का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक चुम्बक में एक ऐसी जगह जरूर होती है, जहां सबसे ज्यादा 'चुम्बकत्व' होता है, इसे 'चुम्बक का ध्रुव' कहते हैं।






दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।

ग्रामोफोन का आविष्कार


ग्रामोफोन के आविष्कार से चल चित्र जगत् में भी अनोखी क्रांति आई । इसे बोलचाल की भाषा में कुछ लोग 'लाउडस्पीकर' भी बोलते हैं। 

   यूनानी भाषा के शब्द ग्रामोफोन का पूरा अर्थ है- ग्रामो = अक्षर तथा फोन का अर्थ है = 'ध्वनि’ । इस प्रकार ग्रामोफोन को ध्वनि उत्पन्न करने वाला एक यंत्र माना जाता है। 

   सर्वप्रथम लियन स्कॉट नामक वैज्ञानिक ने 1857 में एक ऐसे यंत्र का आविष्कार किया जिसके द्वारा ध्वनि का अभिलेखन किया जा सकता था । यह यंत्र 'फोनाटोग्राफ' कहा गया।

इस अभिलेखन वाली ध्वनि को पुनः उत्पादन करने के लिए टी. ए. एडिसन द्वारा 1876 में एक यंत्र बनाया, जिसे 'फोनोग्राफ' नाम मिला ।

    अमेरिका के वैज्ञानिक टामस अल्वा एडिसन के मन में सर्वप्रथम यह विचार आया कि एक ऐसा यंत्र निर्मित किया जाए, जिससे किसी प्लास्टिक या धातु की प्लेट पर अंकित ध्वनि तरंगों को पुनः उसी रूप में सुना जा सके। उनके विचार के बाद वे ऐसी खोजबीन में एकदम से जुट गए। वे कई वर्षों तक प्रयास करते रहे। उन्होंने एक सिलेंडर पर टीन की पत्ती लगाकर घुमाना शुरू किया। इस पत्ती को एक सुई छू रही थी । यह ग्रामोफोन रिकार्ड का प्रथम रूप था ।

  रिकार्ड पर टेढ़ी-मेढ़ी जो नालियां भी बनी होती हैं वे एक प्रकार के कम्पन से बनती हैं। भारी आवाज में नालियों में टेढ़ापन अधिक होता है, जबकि हल्की आवाज में कम। 1898 में जर्मनी के एक वैज्ञानिक एमिल बर्लिनर ने ग्रामोफोन कम्पनी बनाई जहां ग्रामोफोन रिकार्ड बनने लगे।

    आजकल तो एक विशेष गोल डिस्क पर आवाज अंकित कर ली जाती है। इस गोल डिस्क को एक विशेष गति पर चलाया जाता है। गोल डिस्क को छूती हुई सुई लगी रहती है। डिस्क गोल घूमती है। उस पर स्पर्श करती हुई सुई रगड़ती जाती है। इस प्रकार निश्चित आकृति पर रिकार्ड की गई आवाज निकलती है । आजकल तो माइक और एम्प्लीफायर के बन जाने से ग्रामोफोन में भी परिवर्तन आया है। अब पिकअप प्रणाली शुरू हुई है। बड़े-बड़े रिकार्डप्लेयर और रेडियोग्राम तथा स्टीरियो रिकार्ड प्लेयर बनाए गए हैं। पूर्व में एक रिकार्ड में केवल एक गाना भरा जाता था तथा प्रत्येक बार इस्पात की सुई को बदला जाता था। लेकिन अब ऐसे रिकार्ड बनाए जा रहे हैं, जिनमें एक साथ कई गाने रिकार्ड किए जाते हैं तथा बार-बार सुई नहीं बदली जाती।





दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।

टाइपराइटर का आविष्कार


टाइपराइटर एक ऐसा यंत्र है, जिसकी सहायता से मिनटों में स्वच्छ, साफ और व्यवस्थित अक्षरों को टाइप किया जा सकता है। आजकल सरकारी व गैर-सरकारी दफ्तरों में अधिकांश काम टाइपराइटर से ही किया जाता है।

   सर्वप्रथम जो टाइपराइटर (टंकण मशीन) तैयार किया गया, उसका आविष्कार 1814 में हेनरी गिल ने किया। हेनरी गिल इंग्लैंड के निवासी थे। उनकी देखा-देखी अमेरिका के एक इंजीनियर ने 'बर्ट टाइपोग्राफर' नामक मशीन बनाई। 1836 में क्रिस्टोफर शोल्स ने टाइपराइटर का व्यवहारिक रूप तैयार किया। इस टाइपराइटर में शब्दों और अक्षरों के साथ अंक भी टाइप हो जाते थे।

     अमेरिका की रैमिंग्टन कम्पनी ने टाइपराइटर के अनेक मॉडल तैयार किए। इस कम्पनी ने एक विशेष टाइपराइटर 1874 में बनाया। इसमें अनेक कमियों को दूर किया गया था। आज धीरे-धीरे अनेक प्रयासों के बाद विश्व की अनेक भाषाओं में टाइपराइटर बन चुके हैं । देवनागरी लिपि का टाइपराइटर रैमिंग्टन कम्पनी ने सबसे पहले तैयार किया था ।

   भारतवर्ष में आजकल चार प्रमुख कम्पनियां टाइपराइटर का निर्माण कर रही हैं-रैमिंगटन, गोदरेज, हाल्डा और फैसिट । इन प्रमुख कंपनियों के माध्यम से मानक टंकण यंत्र, पोर्टेबिल टंकण यंत्र, वहनीय टंकण यंत्र, ध्वनि रहित टंकण यंत्र, वैरीटाइपर, विद्युत, टंकण यंत्र, इलैक्ट्रानिक टंकण यंत्र विकसित किए गए हैं।

     मानक हस्तचालित टंकण यंत्र हाथ से काम करता है। इससे बहुत तेजी से काम करना संभव नहीं क्योंकि अंगुलियों से ही सारा काम करना पड़ता है। विद्युत टाइपराइटर में हर समय बिजली की जरूरत होती है। इसमें छपाई सुंदर और आकर्षक होती है काम भी जल्दी संपन्न होता है। 

    इलैक्ट्रोनिक टाइपराइटर, एक ऐसा टाइपराइटर है । इसमें अनेक प्रकार की व्यवस्थाएं होती हैं। इसकी मदद से एक साथ मनचाही प्रतियां निकाली जा सकती हैं। एक ही मशीन पर हिन्दी-अंग्रेजी तथा अन्य दूसरी भाषाएं टाइप करने की भी व्यवस्था होती है । इलैक्ट्रोनिक टाइपराइटर में एक विशेष प्रकार का सफेद रिबन होता है, जिस पर टाइप किए गए अक्षर मिटाकर फौरन दूसरे अक्षर टाइप किए जा सकते हैं। इसमें मैमोरी सैक्शन होता है, जिसमें कोई भी मैटर टाइप करके छोड़ा जा सकता है। बाद में जरूरत पड़ने पर मैटर टाइप किया जा सकता है ।





दुनिया के 7 आविष्कार जिसे धरती पर बदलाव आया | ऐसे आविष्कार जिसने इंसानो को नयी तरीका दिया | 7 inventions Of The World That Changed The World रडार एक ऐसा विशेष यंत्र है, जिसकी मदद से ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता लगाया जाता है । 'रडार' के आविष्कार से पहले, आकाश में उड़ने वाले विमानों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। ‘रडार' का प्रयोग हम एक तरह से जासूसी के कार्य के लिए, विशेष रूप से करते हैं । रडार का आविष्कार सबसे पहले स्काटलैंड के वैज्ञानिक राबर्ट वाटसन वाट ने किया था। विमानों की काफी दुर्घटनाएं जब हो रही थीं, तब एक ऐसे यंत्र की जरूरत महसूस की गई । रडार के आविष्कार से अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं रोकने में मदद मिली। रडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं। ये तरंगें वापस लौटकर रिसीवर सेट में रेडियो तरंगों का एक चित्र प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार रडार ट्रांसमीटर द्वारा एक निश्चित समय में आकाश में उड़ने वाले विमानों की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। आकाश में उड़ने वाला विमान किस गति से उड़ रहा है, उसकी ऊंचाई क्या है ? आदि बातों का पता भी 'रडार' से लग जाता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग तरह के शक्तिशाली 'रडार' बनते हैं। पूर्व में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों का पता नहीं चल पाता था। दुश्मनों के विमान कम ऊंचाई पर आकर युद्ध के मैदान में नुकसान पहुंचाते थे। इसके लिए 'इन्द्र-1' रडार का विकास किया गया। भारतवर्ष में इलैक्ट्रोनिक्स लि. (बेल) ने सर्वप्रथम रडार का निर्माण किया था इसने 'इन्द्र-2' का भी निर्माण किया, जिसकी क्षमता 'इन्द्र-1' से अधिक है। 'इन्द्र-1' की विशेषता है कि यह एक साथ कई हमलावर विमानों पर नजर रख सकता है।


प्लास्टिक की कहानी

आज के युग में प्लास्टिक का काफी महत्व है, प्रत्येक क्षेत्र में प्लास्टिक का जमकर उपयोग किया जा रहा है। बटन से लेकर बड़े-बड़े यंत्रों में प्लास्टिक इस्तेमाल किया जाता है। प्लास्टिक का साधारण भाषा में अर्थ होता है, 'जो बहुत आसानी से मोड़ा जा सके।' प्लास्टिक के प्रचलन से जहां एक तरफ सुविधा हुई है, वहीं अन्य वस्तुओं के बढ़ते दामों को कम करने में सहायता मिली है।

    प्लास्टिक का सर्वप्रथम आविष्कार उन्नीसवीं शताब्दी के सातवें दशक में अमरीका में हुआ था। आविष्कारक का नाम था-जानवेसली हाडपेर। प्लास्टिक को पूर्व में 'सैल्यूलाइड' के नाम से पहचानते थे। बाद में इसका नाम 'प्लास्टिक' पड़ा। प्लास्टिक की एक विशेषता है कि इसे बार-बार प्रयोग किया जा सकता है। लचीलेपन और मुलायम होने के कारण इसका अनेकों बार उपयोग हो जाता है। घर के जूते हों, चप्पल हों या खिलौने अथवा दीवारों की खूंटी, हरजगह प्लास्टिक का उपयोग दिखलाई पड़ता है। प्लास्टिक को कई तरह के रंग मिलाकर उसे और अधिक आकर्षक व सुंदर बनाया जा सकता है।

   कुछ इस तरह की प्लास्टिक भी होती है, जो तुरंत ही आग नहीं पकड़ती। धातु की तुलना में प्लास्टिक हल्की भी होती है तथा इस पर पानी एवं हवा का प्रभाव नहीं पड़ता। प्लास्टिक में जंग भी नहीं लगती। प्लास्टिक से निर्मित कुछ वस्तुएं बहुत ही लचीली व कुछ बहुत कठोर होती हैं जैसे-चश्मे के फ्रेम, कंघा, ब्रुश, टेलीफोन सेट आदि। प्लास्टिक के आविष्कार से सभी को लाभ मिला है।

   फिनोलिन और अमीनो ऐसे प्लास्टिक हैं जिन्हें एक बार किसी सांचे में ढाल लिया जाता है। इन्हें बार-बार पिघलाना संभव नहीं है। प्लास्टिक से मोटी-मोटी चादरें भी बनाई जाती हैं, रेल के डिब्बों में या किसी बड़ी मशीन में प्लास्टिक की इन चादरों और छड़ों का उपयोग किया जाता है। आजकल तो बड़े-बड़े यंत्रों में भी प्लास्टिक लगाया जाता है।

    सेल्यूलोसिक प्लास्टिक बड़ी सरलता से आग में पिघल जाती है। इसी गुण के आधार पर इससे प्लास्टिक का छोटा-छोटा सामान बनाया जाता है । खिलौने, मग, फाउन्टेनपेन आदि इसी प्रकार तैयार होते हैं। आजकल तो प्लास्टिक ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया है। नकली दांत और नकली आंखें तक प्लास्टिक से बनने लगी हैं। प्लास्टिक से ही एक विशेष तरह की वार्निश भी तैयार होने लगी है। चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले यंत्रों में भी प्लास्टिक का बोलबाला है।

     आज हमारे वैज्ञानिक निरंतर इस प्रयास में लगे हैं कि प्लास्टिक का अधिक से अधिक उपयोग हुए किया जा सके। गुब्बारे काफी ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं।


Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ: