12 ऐसे भारतीय इंसान जिन पर हमें गर्व हैं। इनके वजह से हमें गर्व है हम भारतीय हैं।


12 ऐसे भारतीय इंसान जिन पर हमें गर्व 




12 ऐसे भारतीय इंसान जिन पर हमें गर्व 


वे हमारे परदेसी बंधु हैं। यह सच है कि उनमें से कुछ के पूर्वज मजदूरी करने दूसरे देशों में गये थे। पर आज दुनिया के कोने-कोने में फैले भारतीय गिरमिटिया नहीं है। अपनी मेहनत, लगन और इच्छा शक्ति के बूते उन्होंने दुनिया को रास्ता दिखाया है। चिकित्सा, तकनीक, सॉफ्टवेयर, अंतरिक्ष विज्ञान, अर्थशास्त्र, मनोरंजन, उद्योग-व्यापार, साहित्य, संगीत और शासन सत्ता तक कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहाँ वे पहले कतार में न हों । वे वतन से मुँह मोड़ गए हैं, ऐसा कहना भी ठीक न होगा, आखिर वे दुनिया के सामने भारत की स्वर्णिम तस्वीर पेश करते हैं। वे भी हमारे एवं आपकी तरह इस देश के लाड़ले बेटे हैं, जो 'भारतीय विश्व की परिकल्पना को साकार करने में लगे हुए हैं।




विजय सिंह



भारत आना एक तरह से घर वापसी जैसा सुकून देता है। सन् 2002 में बाईस फरवरी को चालीस साल के होने जा रहे गोल्फर विजय सिंह पैदा तो फिजी में हुए, पर वे अपने को उतना ही भारतीय भी मानते हैं।

   2002 में सातवीं रैंकिंग पर रहे विजय ने पेशेवर गोल्फर के तौर पर अपना कैरियर 1982 में शुरु किया। 1993 में पीजीए टूर में शामिल होने के बाद वे फ्लोरिड़ा (अमरीका) में रह रहे हैं। अपने 11 साल के गोल्फ कैरियर में उन्होंने दो बड़े खिताब जीते हैं। 1998 में यूएसपीजीए और 2000 में ऑगस्टा मास्टर्स, मई 2001 में उन्हें यूरोपियन टूर का मानद आजीवन सदस्य भी बनाया गया।

   पश्चिम में नस्लवाद के मसले पर उनका कहना है कि खेल के दौरान उन्हें कभी इसका शिकार नहीं होना पड़ा। हालांकि वे मानते हैं कि लोग उन्हें थोड़ा अलग नजर से जरूर देखते हैं, जैसे कह रहे हों, 'इसका यहाँ क्या काम है।"




कल्पना चावला


41 साल की कल्पना जब भी आसमान में होती है, भारतीयों की खुशी भी सातवें आसमान पर होती है। कल्पना 16 जनवरी 2003 को अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा पर रवाना हुई। करनाल में जन्मी कल्पना ने 1982 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। 1984 में टेक्सास में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर किया। 1988 में कोलरैडो विश्वविद्यालय से इसी विषय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 19 नवम्बर, 1997 को उन्हें पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। जब वे छह अन्य खगोलविदों के साथ नासा के एसटीएस-87 मिशन पर अंतरिक्ष में गई थी और वह नासा के ही एसटीएस-107 अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी हुई थी ।

     कल्पना मानती थी कि उन्हें एयरोनॉटिक्स को कैरियर के रूप में अपनाने की प्रेरणा जे.आर.डी. टाटा से मिली। साहस और संकल्प की प्रतिमूर्ति कल्पना इस बात की मिसाल थी कि अपनी मेहनत और लगन के बूते भारतीय महिलाओं में हर ऊँचाई को छू लेने की काबिलियत है। आज कल्पना चावला हमारे बीच में नहीं है ।





उज्जल दोसांझ



उज्जल दोसांझ ने कनाड़ा में वह राजनीतिक मुकाम हासिल किया है, जहाँ कम ही भारतीय पहुँच पाते हैं। वे ब्रिटिश कोलम्बिया के प्रधानमंत्री रहे हैं।

   1947 में जालंधर के दोसांझ कलां गाँव में पैदा हुए उज्जल 17 वर्ष की उम्र में भारत से ब्रिटेन गये। 1968 में वे वेंकुवर चले गए। 1977 में वहाँ उन्होंने वकील के रूप में अपना पंजीकरण कराया। उज्जल ने कनाड़ा में रंगभेद के खिलाफ झण्डा बुलंद किया। 1991 में वे पहली बार ब्रिटिश कोलंबिया की विधानसभा के सदस्य चुने गए। कनाड़ा में सिख हितों के लिए उन्होंने संघर्ष किया, पर उन्होंने सिख अलगाववादियों की अलग गृह राज्य की माँग का जमकर विरोध किया । भारत विभाजन की माँग करने वाली ताकतों का विरोध करने के चलते उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। अस्सी टांके लगने के बाद वे नई जिंदगी पा सके । लेकिन उसके बाद भी वे उसी लीक पर कायम हैं।



फातिका मीर



महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्ता के खिलाफ सत्य के संघर्ष की शुरुआत की थी। फातिमा मीर उस देश में गाँधी की आवाज है। बहातर साल की फातिमा मीर दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की तीसरी पीढ़ी से ताल्लुक रखती हैं। वे वर्तमान में डरबन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लैक रिसर्च की निदेशक है। उन्होंने नेल्सन की जीवनी 'हायर देन होप' लिखी है। 1952 में दक्षिण अफ्रीका के प्रसिद्ध नाटाल सत्याग्रह में उनकी अहम भूमिका रही थी। दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता संघर्ष और रंगभेद विरोधी मुहिम में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद उनका ध्यान अन्य गतिविधियों की ओर भी गया है। आजकल वे 'ताज' महल-इन इंटर्नल लव स्टोरी' नामक फिल्म से सह लेखिका के तौर पर जुड़ी है।




सबीर भाटिया 



सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारतीय युवा प्रतिभाओं का लोहा सारी दुनिया मानती है । सिलिकॉन वैली की लगभग सभी बड़ी कम्पनियों में भारतीय ऊँचे ओहदों पर हैं, पर आम भारतीय के लिए सबीर भाटिया ही सिलिकॉन वैली का पर्याय हैं । चंडीगढ़ में पैदा हुए सबीर भाटिया बैंगलौर में बड़े हुए। वे 1988 में अमरीका जा बसे। उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कम्पनी से टक्कर लेते हुए हॉटमेल डॉट कॉम को सफल बनाया और बाद में चार सौ मिलियन डॉलर में उसे माइक्रोसॉफ्ट को ही बेचकर भारी मुनाफा कमाया। वे 'चाइल्ड रिलीफ एण्ड यू' जैसी सामाजिक संस्थाओं से भी सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। अप्रवासी भारतीय से जुड़े मुद्दों पर वे अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं । भाटिया की गिनती अमरीका के योग्यतम कुँवारों में होती है। उनका सपना है, 'भारत की व्यावसायिक और वौद्धिक प्रतिभा का डंका सारी दुनिया में बजे, जिससे देश की हालत में आमूल सुधार हो।'




झुंपा लाहिड़ी


न्यूयार्क में रहने वाली झुंपा लाहिड़ी 1967 में लंदन में पैदा हुई और रोड आइलैंड में पली-बढ़ी, पर उनके पिता की भारतीय जड़ें उनमें और भी गहरे तक समाई हुई है। झुंपा लेखकों की उस पौध से ताल्लुक रखती हैं, जिसने यह साबित किया है कि 'भाषा नस्ल की मोहताज नहीं होती।' उनकी लिखी 'इंटरप्रेटर ऑफ मेलोडिज' ने वर्ष 2000 में पुलित्जर पुरस्कार हासिल किया। इस पुस्तक की शीर्षक कहानी को अमरीका की सर्वश्रेष्ठ कहानियों की सूची में भी जगह मिली है । झुंपा भारत के साथ एक विशिष्ट अपनापन महसूस करती हैं। शायद यही अपनापन उन्हें बार बार कोलकाता खींच लाता है। जहाँ कभी उनके माता-पिता रहा करते थे। 'द न्यूयॉर्कर' ने जब अमरीका के बीस सर्वश्रेष्ठ युवा कथा लेखकों की सूची तैयार की, तो उसमें झुंपा को भी जगह मिली । अमरीकी नये कथा साहित्य में झुंपा का कितना प्रभाव है, इसका पता कम उम्र में हासिल की गई उनकी उपलब्धियों को देखकर ही चलता है ।





कृष्ण भरत



हाल में अमरीका में सी बी एस टीवी चैनल ने अपने एक कार्यक्रम के दौरान आई आई टी को एम आई टी, हार्वर्ड और प्रिंसटन जैसे संस्थानों से भी ऊँचा स्थान दिया है। यह बहुत कुछ कृष्ण भरत जैसे छात्रों की ही बदौलत है। कृष्ण भरत आई आई टी चैन्नई के छात्र रहे हैं । वे आजकल इंटरनेट के सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन गूगल में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने 1996 में जॉर्जिया विश्वविद्यालय से पीएचडी भी की है । इसके अलावा वे वर्ल्ड वाइड वेब कांफ्रेंस के रिव्यूअर भी रह चुके हैं।




स्वराज पॉल


व्यापारी जगत में सफलता के लिए निम्न तीन बातें जरूरी है मानवीय मूल्यों और विषयों का ज्ञान, अद्वितीय की खोज और सामूहिक प्रयास' यह मानना है जालंधर में जन्मे 71 वर्षीय ब्रिटिश उद्योगपति स्वराज पॉल का 'लाई पॉल ऑफ मरिलबोन' की उपाधि से सम्मानित स्वराज पॉल 1956 में अपनी छोटी बहन अम्विका का इलाज कराने इंग्लैण्ड गए। 1968 में बेटी का निधन हो गया, तबसे वे वहीं बस गए। पॉल ने वहाँ कपारो समूह की शुरुआत की। उनकी सूझबूझ और व्यापार कौशल से आज कपारो समूह का कारोबार 2.8 करोड़ पाउण्ड का है। 1997 में उन्हें हाउस ऑफ लार्ड्स का सदस्य बनाया गया। दुनिया भर में चोटी की राजनीतिक और व्यापारिक शख्सियों से उनके नजदीकी रिश्ते हैं। इन्हीं सब बातों के चलते वे ब्रिटेन में बसे भारतीयों की सबसे मुखर आवाज तो है ही, यूरोप में भारतीय हितों के प्रखर पैरोकार भी हैं ।




जुबीन मेहता


जुबीन मेहता ऑर्केस्ट्रा संगीत की दुनिया में सबसे मशहूर लोगों में हैं। 29 अप्रैल, 1936 को मुम्बई (तब बॉम्बे) में पैदा हुए जुबीन पारसी है। उनके पूर्वज करीब एक हजार साल पहले भारत में आकर बसे थे ।

      1963 में ही उनके संगीत गुरु स्वरोस्की ने भविष्यवाणी कर दी थी कि वे विश्व संगीत के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराऐंगे। 1994 में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कोष के लिए मेहता ने सराजेवो सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा के साथ कार्यक्रम किया। जिसका 16 देशों में सीधा प्रसारण किया गया। नवम्बर, 1994 में उन्होंने इजराइल फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा को भारत लाकर वह काम कर दिखाया । जो पिछले करीब तीन दशकों से नहीं हो सका था। मुम्बई और दिल्ली में कार्यक्रम आयोजित कर उन्होंने भारत और इजराइल के बीच जारी राजनीतिक ठहराव को खत्म करने में मदद की।




बिक्रम चौधरी


योग के आधुनिक संस्करण 'योगा' की विश्व भर में पताका फहराने वालों में बिक्रम चौधरी सबसे आगे हैं। उन्होंने 'बिक्रम योग' ईजाद कर उपचारी योग के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किया है 105 डिग्री फॉरेनहाइट तक गर्म कमरे में किया जाने वाला यह योग शरीर में भीतर से बाहर की ओर काम करता है। मधुमेह, गठिया, हृदय रोग और कमर दर्द जैसी बीमारियों को बिक्रम योग की मदद से चमत्कारी स्तर तक कम किया जा सकता है

    1946 में कोलकाता (तब कलकत्ता) में पैदा हुए बिक्रम ने योग शिक्षा विष्णु घोष से पाई उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय योग प्रतियोगिता भी जीती, तब वे केवल तेरह साल के थे

   उनके घुटने में लगी लाइलाज चोट को गुरु विष्णु घोष ने ठीक कर दिया। जिसके बाद गुरु के आदेश से उन्होंने देशभर में योग स्कूल स्थापित किए। आज 'योग कॉलेज ऑफ इण्डिया' की शाखाएँ दुनिया भर में फैली हुई हैं।




एस. आर. नाथन


दक्षिणी पूर्वी देशों में भारतीयों ने अच्छी खासी सामाजिक और राजनीतिक हैसियत पा ली है । यह बात साफ तौर पर तब सामने आई, जब 1999 में एस. आर. नाथन सिंगापुर गणराज्य के राष्ट्रपति चुने गए । नाथन ने अपने कैरियर की शुरुआत सिंगापुर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में की । इससे पूर्व उन्होंने अमेरिका में सिंगापुर के राजदूत के तौर पर भी कार्य किया। उन्होंने भारत और सिंगापुर के बीच व्यापार सहयोग बढ़ाने की दिशा में भी काम किया। वे सिंगापुर इंडियन डेवलपमेंट एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य भी हैं। 3 जुलाई, 1924 को सिंगापुर में ही पैदा हुए नाथन ने मलाया विश्वविद्यालय से 1954 में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने वहाँ हिन्दू एन्डोमेंट बोर्ड के प्रमुख तौर पर भी कार्य किया।




अमर बोस


अमर बोस जब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी में पढ़ाई कर रहे थे, तब उनकी रुचि ध्वनि विज्ञान में बढ़ी और उन्होंने हॉल में सुनाई पड़ने वाली आवाज को अपने स्पीकर के जरिए पैदा करने की कोशिश की उन्होंने अपने बनाए स्पीकर सिस्टम में पहली बार दीवार और छत से परावर्तित होने वाली आवाज का इस्तेमाल करने की कोशिश की। 1930 में फिलाडेल्फिया में पैदा हुए बोस बंगाली पिता और अमेरिकी माँ की संतान हैं। अपनी युवावस्था के कुछ दिनों में उन्होंने धन कमाने के लिए खिलौना रेलगाड़ियों और ट्रांजिस्टर आदि की मरम्मत भी की । 1964 में उन्होंने बोस कॉरपोरेशन की स्थापना की। जिसके बनाए कार स्टीरियो सिस्टम, वेव रेडियो सारी दुनिया में इस्तेमाल किए जाते हैं।


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